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________________ SENEFIREFERESENTENEFINE FEEFENEFFEE निष्ठुरतापूर्वक प्राणियों की घात में चित्त लगाए रखता है, और उन्हें दंड देता है तथा प्राणातिपात से लेकर परिग्रह-पर्यंत तथा क्रोध से लेकर मिथ्यादर्शन शल्य तक के पापस्थानों से निवृत्त नहीं होता है, (वह चाहे किसी भी अवस्था में हो, अवश्यमेव पापकर्म का बंध 卐 करता है, यह सत्य है)। * (इस सम्बन्ध में) आचार्य (प्ररूपक) पुनः कहते हैं- इसके विषय में भगवान् : महावीर ने वधक (हत्यारे) का दृष्टान्त बताया है- कल्पना कीजिए-कोई हत्यारा हो, वह * गृहपति की अथवा गृहपति के पुत्र की अथवा राजा की या राजपुरुष की हत्या करना चाहता 卐 है। (वह इसी ताक में रहता है कि) अवसर पाकर मैं घर में प्रवेश करूंगा और अवसर पाते है 卐 ही (उस पर) प्रहार करके हत्या कर दूंगा। 'उस गृहपति की, या गृहपतिपुत्र की, अथवा राजा की या राजपुरुष की हत्या करने हेतु अवसर पाकर घर में प्रवेश करूंगा, और अवसर पाते ही प्रहार करके हत्या कर दूंगा;' इस प्रकार (सतत संकल्प-विकल्प करने और मन में 卐 निश्चय करने वाला) वह हत्यारा दिन को या रात को, सोते या जागते प्रतिक्षण इसी ॐ उधेड़बुन में रहता है, जो उन सबका अमित्र-(शत्रु) भूत है, उन सबसे मिथ्या (प्रतिकूल) ॐ व्यवहार करने में जुटा हुआ (संस्थित) है, जो दंड (हिंसक) रूपी चित्त में सदैव विविध प्रकार के निष्ठुरतापूर्वक घात का दुष्ट विचार रखता है, क्या ऐसा व्यक्ति उन पूर्वोक्त म व्यक्तियों का हत्यारा कहा जा सकता है, या नहीं? आचार्यश्री के द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर प्रेरक (प्रश्नकर्ता शिष्य) समभाव (माध्यस्थ्य-भाव) के साथ कहता है- 'हां, पूज्यवर! ऐसा (पूर्वोक्त विशेषणविशिष्ट) पुरुष हत्यारा (हिंसक) ही है।' आचार्य ने (पूर्वोक्त दृष्टान्त को स्पष्ट करने हेतु) कहा卐 जैसे उस गृहपति या गृहपति के पुत्र को अथवा राजा या राजपुरुष को मारने का इच्छुक वह 卐 ॐ वधक पुरुष सोचता है कि मैं अवसर पा कर इसके मकान (या नगर) में प्रवेश करूंगा और 5 मौका (या छिद्र अथवा सुराग) मिलते ही इस पर प्रहार कर दूंगा; ऐसे कुविचार से वह दिन-रात, सोते-जागते हरदम घात लगाए रहता है, सदा उनका शत्रु (अमित्र) बना रहता है, + मिथ्या (गलत) कुकृत्य करने पर तुला हुआ है, विभिन्न प्रकार से उनके घात (दंड) के 卐 लिए नित्य शठतापूर्वक उसके दुष्टचित्त में लहर चलती रहती है (वह चाहे घात न कर सके, परंतु है वह घातक ही)। इसी तरह (अप्रत्याख्यानी) बाल (अज्ञानी) जीव भी समस्त प्राणियों, भूतों, जीवों और सत्वों का दिन-रात, सोते या जागते सदा वैरी (अमित्र) बना म रहता है, मिथ्याबुद्धि से ग्रस्त रहता है, उन जीवों और सत्त्वों का दिन-रात, सोते या जागते ॥ ॐ सदा वैरी (अमित्र) बना रहता है, मिथ्याबुद्धि से ग्रस्त रहता है, उन जीवों को नित्य निरन्तर F REEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE [जैन संस्कृति खण्ड/230 %%%%%%%叩叩叩叩叩叩叩叩叩叩叩叩叩叩叩叩叩叩叩叩叩! DD
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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