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________________ (523) REEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE तत्थ खलु भगवता छज्जीवनिकाया हेऊ पण्णत्ता, तंजहा-पुढविकाइया जाव' 卐तसकाइया। इच्चेतेहिं छहिं जीवनिकाएहिं आया अप्पडिहयपच्चक्खायपावकम्मे निच्चं पसढ विओवातचित्तदंडे , तंजहा-पाणाइवाए जाव परिग्गहे , कोहे जाव मिच्छादसणसल्ले।आचार्य आह-तत्थ खलु भगवता वहए दिटुंते पण्णत्ते, से जहानामए वहए सिया गाहावतिस्स वा गाहावतिपुत्तस्स वा रण्णो वा रायपुरिसस्स वा खणं ॐ निदाए पविसिस्सामि खणं लभ्रूण वहिस्सामि पहारेमाणे, से किं नु हु नाम से वहए तस्स वा गाहावतिस्स तस्स वा गाहावतिपुत्तस्स तस्स वा रण्णो तस्स वा रायपुरिसस्स खणं निदाए पविसिस्सामि खणं लभ्रूण वहिस्सामि पहारेमाणे दिया वा राओ वा सुत्ते 卐 वा जागरमाणे वा अमित्तभूते मिच्छासंठिते निच्चं पसढविओवातचित्तदंडे भवति? एवं वियागरेमाणे समियाए वियागरे चायए-हंता भवति। - आचार्य आह-जहा से वहए वा गाहावतिस्स तस्स वा गाहावतिपुत्तस्स तस्स वा रण्णो तस्स वा रायपुरिसस्स खणं णिदाए पविसिस्सामि खणं लभ्रूण वहिस्सामीति 卐 पहारेमाणे दिया वा राओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूते मिच्छासंठिते निच्चं ॥ ॐ पसढविओवातचित्तदंडे एवामेव बाले वि सव्वेसिं पाणाणं जाव सत्ताणं पिया वाई रातो वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूते मिच्छासंठिते निच्चं पसढविओवातचित्तदंडे, तं. पाणाइवाते जाव मिच्छादसणसल्ले, एवं खलु भगवता अक्खाए अस्संजते अविरते 卐 अप्पडिहयपच्चक्खायपावकम्मे सकिरिए असंवुडे एगंतदंडे एगंतबाले एगंतसुत्ते यावि卐 ॐ भवति, से बाले अवियारमण-वयस-काय-वक्के सुविणमवि ण पस्सति, पावे य से कम्मे कज्जति । जहा वे वहए तस्स वा गाहावतिस्स जाव तस्स वा रायपुरिसस्स पत्तेयं पत्तेयं चित्त समादाए दिया वा राओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूते मिच्छासंठिते ॐ निच्चं पसढविओवातचित्तदंडे भवति, एवामेव बाले सव्वेसिं पाणाणं जाव सव्वेसिं ॐ सत्ताणं पत्तेयं पत्तेयं चित्त समादाए दिया वा रातो वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूते मिच्छासंठिते जाव चित्तदंडे भवइ । (सू.कृ. 2/4/749) इस विषय में तीर्थंकर भगवान् ने षट्जीवनिकाय कर्मबंध के हेतु के रूप में बताए हैं। वे षड्जीवनिकाय पृथ्वीकाय से लेकर त्रसकाय पर्यंत हैं। इन छह प्रकार के जीवनिकाय F के जीवों की हिंसा से उत्पन्न पाप को जिस आत्मा ने (तत्पश्चर्या आदि करके) नष्ट 卐 (प्रतिहत) नहीं किया, तथा भावी पाप को प्रत्याख्यान के द्वारा रोका नहीं, बल्कि सदैव 卐 明明明明明 听听听听听听听听 F FFFFFFFFFFFFFFFFFFFFEN अहिंसा-विश्वकोश/229]
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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