SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 255
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ FREEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE हल-बखर, स्यन्दन-युद्ध-रथ, शिविका-पालकी, रथ, शटक-छकड़ा गाड़ी, यान, युग्यदो हाथ का वेदिकायुक्त यानविशेष, अट्टालिका, चरिका-नगर और प्राकार के मध्य का आठ हाथ का चौड़ा मार्ग, परिघ-द्वार, फाटक, आगल, अरहट आदि, शूली, लकुट- लकड़ी卐 लाठी, मुसुंढी, शतघ्री-तोप या महाशिला जिससे सैकड़ों का हनन हो सके, तथा अनेकानेक' ॐ प्रकार के शस्त्र, ढक्कन एवं अन्य उपकरण बनाने के लिए और इसी प्रकार के ऊपर कहे गए तथा नहीं कहे गए ऐसे बहुत-से सैकड़ों कारणों से अज्ञानी जन वनस्पतिकाय की हिंसा HE करते हैं। {520) सत्ते सत्तपरिवजिया उवहणंति दढमूढा दारुणमई कोहा माणा माया लोहा म हस्स रई अरई सोय वेयत्थी जीय-धम्मत्थकामहेउं सवसा अवसा अट्ठा अणट्ठाए य卐 卐तसपाणे थावरे य हिंसंति मंदबुद्धी। सवसा हणंति, अवसा हणंति, सवसा अवसा दुहओ हणंति, अट्ठा हणंति अणट्ठा हणंति, अट्ठा अणट्ठा दुहओ हणंति, हस्सा हणंति, वेरा हणंति, रईय हणंति, 卐 हस्सा-वेरा-रईय हणंति, कुद्धा हणंति, लुद्धा हणंति, मुद्धा हणंति, कुद्धा लुद्धा 卐 ॐ मुद्धा हणंति, अत्था हणंति, धम्मा हणंति, कामा हणंति, अत्था धम्मा कामा हणंति ॥ (प्रश्न. 1/1/सू.18) दृढमूढ-हिताहित के विवेक से सर्वथा शून्य अज्ञानी, दारुण मति वाले पुरुष क्रोध ॥ से प्रेरित होकर, मान, माया और लोभ के वशीभूत होकर तथा हंसी-विनोद-दिलबहलाव के लिए, रति, अरति एवं शोक के अधीन होकर, वेदानुष्ठान के इच्छुक होकर, जीवन, धर्म, ॥ अर्थ एवं काम के लिए,(कभी) स्ववश- अपनी इच्छा से और बिना (कभी) परवश - 卐 पराधीन होकर, (कभी)प्रयोजन से और (कभी)बिना प्रयोजन त्रस तथा स्थावर जीवों का, 卐 जो अशक्त-शक्तिहीन हैं, घात करते हैं। (ऐसे हिंसक प्राणी वस्तुतः)मन्दबुद्धि हैं। : वे बुद्धिहीन क्रूर प्राणी स्ववश (स्वतंत्र) होकर घात करते हैं, विवश होकर घात म करते हैं, स्ववश-विवश दोनों प्रकार से घात करते हैं। सप्रयोजन घात करते हैं, निष्प्रयोजन 卐 घात करते हैं, सप्रयोजन और निष्प्रयोजन दोनों प्रकार से घात करते हैं। (अनेक पापी जीव) हास्य-विनोद से, वैर से और अनुराग से प्रेरित होकर भी हिंसा करते हैं। क्रुद्ध होकर हनन करते हैं, लुब्ध होकर हनन करते हैं, मुग्ध होकर हनन करते हैं, क्रुद्ध-लुब्ध-मुग्ध होकर ॐ हनन करते हैं, अर्थ के लिए घात करते हैं, धर्म के लिए-धर्म मान कर घात करते हैं, काम भोग के लिए घात करते हैं, तथा अर्थ-धर्म-कामभोग-तीनों के लिए घात करते हैं। ) FEEFFERESTHESEEEEEEEEEE अहिंसा-विश्वकोश/227]
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy