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卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐 3 चिकित्सा (काम-चिकित्सा) में प्रवृत्त होते हैं। वह (काम-चिकित्सा के लिए) अनेक
卐 जीवों का हनन, भेदन, लुम्पन, विलुम्पन और प्राण - वध करता है। 'जो पहले किसी ने नहीं
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किया, ऐसा मैं करूंगा' - यह मानता हुआ ( वह जीव - वध करता है), वह जिसकी
चिकित्सा करता है ( वह भी जीव-वध में सहभागी होता है) ।
(518)
पयण- पयावण - जलावण-विदंसणेहिं अगणिं ।
(प्रश्न. 1/1/सू.15)
भोजनादि पकाने, पकवाने, दीपक आदि जलाने तथा प्रकाश करने के लिए अनिकाय के जीवों की हिंसा की जाती है।
(519)
अगार-परियार-भक्ख-भोयण - सयणासण - फलक - मूसल - उक्खल - तत
! विततातोज्ज - वहण - वाहण - मंडव - विविह-भवण- तोरण- विडंग- देवकुल- जालयद्धचंद - णिज्जूहग-चंदसालिय- वेतिय- णिस्सेणि- दोणि- चंगेरी - खील- मंडक - सभापवावसह -गंध-मल्लाणुलेवणं - अंबर - जुयणंगल- मइय- कुलिय- संदण - सीया-रह
सगड - जाण - जोग्ग-अट्टालग - चरिय-दार - गोउर-फलिहा - जंत - सूलिय-लउड - मुसंढि - सयग्धी - बहुपहरणा- वरणुवक्खराणकए, अण्णेहिं य एवमाइएहिं बहूहिं कारणसएहिं हिंसंति ते तरुगणे भणियाभणिए य एवमाई ।
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(प्रश्न. 1/1/ सू.17)
अगार-गृह, परिचार- तलवार की म्यान आदि, भक्ष्य - मोदक - आदि, भोजन - रोटी
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वगैरह, शयन - शय्या आदि, आसन - विस्तर- बैठका आदि, फलक- पाट-पाटिया, मूसल,
ओखली, तत - वीणा आदि, वितत - ढोल आदि, आतोद्य- अनेक प्रकार के वाद्य, वहन -
की नौका आदि, वाहन - रथ- गाड़ी आदि, मण्डप, अनेक प्रकार के भवन, तोरण, विडंग
विटंक, कपोतपाली - कबूतरों के बैठने के स्थान, देवकुल-देवालय, जालक-झरोखा, अर्द्धचन्द्र-अर्धचन्द्र के आकार की खिड़की या सोपान, निर्यूहक-द्वारशाखा, चन्द्रशाला -
अटारी, वेदी, निःसरणी-नसैनी, द्रोणी- छोटी नौका, चंगेरी-बड़ी नौका या फूलों की डलिया,
की खूंटा - खूंटी, स्तम्भ - खम्भा, सभागार, प्याऊ, आवसथ - आश्रम, मठ, गंध, माला, विलेपन,
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[ जैन संस्कृति खण्ड /226
वस्त्र, युग-जूवा, लांगल - हल, मतिक-जमीन जोतने के पश्चात् ढेला फोड़ने के लिए लम्बा
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काष्ठ-निर्मित उपकरणविशेष, जिससे भूमि समतल की जाती है, कुलिक- विशेष प्रकार का
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