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________________ O हिंसात्मक क्रोध आदि कषाय परिग्रह {451 मिथ्यात्ववेदरागास्तथैव हास्यादयश्च षड् दोषाः। चत्वारश्च कषायाश्चतुर्दशाभ्यन्तरा ग्रन्थाः॥ ___ (पुरु. 4/80/116) मिथ्यात्व, तथा स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद का राग, और इसी तरह हास्यादि(हास्य, रति, अरति, शोक, भय और जुगुप्सा- ये) छह दोष और चार कषाय (क्रोध, मान माया और लोभ)- ये अन्तरंग परिग्रह चौदह हैं। O परिग्रह की परिणति : कलह-विरोध 1452 सण्णागारवपेसुण्णकलहफरुसाणि णिट्ठरविवादा। संगणिमित्तं ईसासूयासल्लाणि जायंति॥ (भग. आ. 1120) परिग्रही के परिग्रह संज्ञा और परिग्रह में आसक्ति होती है। वह दूसरे के दोषों को 卐 इधर-उधर कहता है। परिग्रही पुरुष दूसरे का धन लेने के लिए दूसरों के दोष प्रकट करके म उसका धन हरता है। कलह करता है। धन के लिए कठोर वचन बोलता है, झगड़ा करता है, ईर्ष्या और असूया करता है। (यह व्यक्ति अमुक को तो देता है मुझे नहीं देता, इस प्रकार के संकल्प को ईर्ष्या कहते हैं। दूसरे के धनी 卐 होने को न सहना असूया है।) 明明明明听听听听听 {453) परिग्गहो... अपरिमियमणंत-तण्ह-मणुगय-महिच्छ - सारणिरयमूलो ' ॐ लोहकलिकसायमहक्खंधो, चिंतासयणिचियविउलसालो, गारवपविरल्लियग्गविडवो, णियडि-तयापत्तपल्लवधरो पुष्फफलं जस्स कामभोगा, आयासविसूरणा कलहपकंपियग्गसिहरो। (प्रश्न. 1/5/सू.93) 卐 परिग्रह (नामक आस्रव-द्वार का स्वरूप इस प्रकार है:- यह) एक महावृक्ष है। FEEEEEEEEEEEEEEEEEE [जैन संस्कृति खण्ड/196
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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