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________________ 馬 $$$$$$$$$$$$$$$$ 卐 编卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐 {436) अथ निश्चित्तसचित्तौ बाह्यस्य परिग्रहस्य भेदौ द्वौ । नैष: कदाऽपि संगः सर्वोऽप्यतिवर्तते हिंसाम् ॥ बहिरंग परिग्रह के अचित्त और सचित्त यह दो भेद हैं। ये सभी परिग्रह किसी समय भी हिंसा का उल्लंघन नहीं करते अर्थात् कोई भी परिग्रह कभी भी हिंसा-रहित नहीं होता है । {437} उभयपरिग्रहवर्जनमाचार्याः सूचयन्त्यहिंसेति । द्विविधपरिग्रहवहनं हिंसेति जिनप्रवचनज्ञाः ॥ ( पुरु. 4/81/117) और दोनों प्रकार के परिग्रह का धारण हिंसा है- ऐसा सूचित करते हैं। जिनसिद्धान्त के जानने वाले आचार्य ' दोनों प्रकार के परिग्रह का त्याग ' अहिंसा है (438) तत्राहिंसा कुतो यत्र बह्वारम्भपरिग्रहः । वञ्चके च कुशीले च नरे नास्ति दयालुता ॥ ( पुरु. 4/82/118) (439) आरम्भो जन्तुघातश्च कषायाश्च परिग्रहात् । जायन्तेऽत्र ततः पातः प्राणिनां श्वभ्रसागरे ॥ ( उपासका 26/331 ) (ज्ञा. 16/37/857) जहां परिग्रह है, वहां (क्रोधादि) कषाय तथा प्राणी - हिंसा का सद्भाव रहता है। उसी के दुष्परिणाम स्वरूप प्राणियों का नरकरूप समुद्र में पतन होता है- नरक में जाकर उन्हें घोर दुःख सहना पड़ता है। 噩 编卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐 $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ जहां बहुत आरम्भ (हिंसा) और बहुत परिग्रह है, वहां अहिंसा कैसे रह सकती है? क ! ठग और दुराचारी मनुष्य में दया नहीं होती । अहिंसा - विश्वकोश | 1911 馬 卐 馬 馬 卐 筑 卐
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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