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________________ ESSETTEERSEEEEEEEEEM {417) जत्तो पाणवधादी दोसा जायंति सावजवयणं च। अविचारित्ता थेणं थेणत्ति जहेवमादीयं ॥ (भग. आ. 825) जिस वचन से किसी के प्राणों का घात आदि दोष उत्पन्न होते हैं वह सावध वचन ॥ है। अथवा ऐसा कहने में दोष है या नहीं, यह विचार न करके चोर को चोर कहना (लोगों के सामने चोर को चोररूप में निर्दिष्ट करना)सावध वचन है (क्योंकि ऐसा करने से लोग उस चोर की हिंसा भी कर सकते हैं)। 弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱化 14181 परुसं कडुयं वयणं वेरं कलहं च जं भयं कुणइ। उत्तासणं च हीलणमप्पियवयणं समासेण॥ हासभयलोहकोहप्पदोसादीहिं तु मे पयत्तेण। एवं असंतवयणं परिहरिदव्वं विसेसेण॥ (भग. आ. 826-827) कठोर वचन, कटुक वचन, जिस वचन से वैर, कलह और भय पैदा हो, अति त्रास 卐 देने वाले वचन, तिरस्कार-सूचक वचन -ये संक्षेप में अप्रियवचन हैं। हास्य, भय, लोभ, क्रोध और द्वेष आदि कारणों से बोले जाने वाले वचन भी असत्य वचन हैं, प्रयत्नपूर्वक विशेष रूप से उन्हें नहीं बोलना चाहिए। 如听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 1419) सर्वलोकप्रिये तथ्ये प्रसन्ने ललिताक्षरे । वाक्ये सत्यपि किं ब्रूते निकृष्ट : परुषं वचः॥ (ज्ञा. 9/22/552) सर्वलोक को प्रिय लगने वाले, सब को प्रसन्न करने वाले, सत्य व ललित पदों : वाले वचनों के होते हुए भी, नीच पुरुष, न जाने क्यों, कठोर वचन बोलते हैं? FFERENEFFERESENTERESE जैन संस्कृति खण्ड/184
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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