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अदयैः संप्रयुक्तानि वाक्शस्त्राणीह भूतले। सद्यो मर्माणि कृन्तन्ति शितास्त्राणीव देहिनाम्॥
(ज्ञा. 9/26) निर्दय पुरुषों के द्वारा चलाये गए (प्रयुक्त) वचन रूप शस्त्र इस पृथ्वी-तल पर जीवों के मर्म को तीक्ष्ण शस्त्रों के समान तत्काल छेदन करते हैं, क्योंकि असत्य वचन के समान है। दूसरा कोई भी शस्त्र नहीं है।
अहिंसात्मक वचनः सत्य
{405) ___ अहिंसालक्षणो भावः पाल्यते येन वचसा तद्भावसत्यम्।
(भग. आ. विजयो. 1187) जिस वचन के द्वारा अहिंसा रूप भाव पाला जाता है, वह वचन भाव सत्य' है
{406) असत्यमपि तत्सत्यं यत्सच्चाशंसकं वचः। सावद्यं यच्च पुष्णाति तत्सत्यमपि निन्दितम्॥
(ज्ञा. 9/3/533) जो वचन जीवों का इष्ट या हित करने वाला हो, वह असत्य हो तो भी सत्य है, और ज जो वचन पाप-सहित हिंसा रूप कार्य को पुष्ट करता हो, वह सत्य हो तो भी असत्य और
निन्दनीय है।
{407) सूनृतं करुणाक्रान्तमविरुद्धमनाकुलम्। अग्राम्यं गौरवाश्लिष्टं वचः शास्त्रे प्रशस्यते ॥
(ज्ञा. 9/5/535) जो वचन सत्य हो, करुणा से व्याप्त हो, विरुद्ध न हो, आकुलतारहित हो, गंवार - व्यक्ति के वचन जैसा न हो, गौरवसहित हो अर्थात् जिसमें हलकापन नहीं हो, वही वचन
शास्त्रों में प्रशंसित माना गया है। कांEEEEEEEEEEEEEEEEE
[जैन संस्कृति खण्ड/180