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________________ अागमनमानमMATAMMERIKANTARANCaleeker-E-FFI THESE 14001 असद्वदनवल्मीके विशाला विषसर्पिणी। उद्वेजयति वागेव जगदन्तर्विषोल्बणा॥ (ज्ञा. 9/10/540) दुष्ट पुरुषों के मुखरूपी बांबी में आन्तरिक विष (कलुषता) के कारण अत्यन्त में तीक्ष्ण जो असत्य वाणीरूपी सर्पिणी रहती है, वह जगत् भर को दुःख देती है (पीड़ित करती है)। $$紧端$$$$$$明明明明明明明明明明明明明明明 {401} अलियवयणं लहुसग-लहुचवल-भणियं भयंकरं दुहकरं अयसकरं वेरकरगं अरइ-रइ-रागदोष-मणसंकिलेस-वियरणं अलियणियडि साइजो यबहुलं मणीयजणणिसेवियं णिस्संसं अप्पच्चयकारगं परमसाहुगरणिज्जं परपीलाकारगंज परमकिण्हलेस्ससेवियं दुग्गइविणिवायविवडणं भवपुणब्भवकरं चिरपरिचियमणुगयं 弱弱弱弱弱弱弱弱弱~~~~~~弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱 दुरंतं। (प्रश्न. 1/2/सू.44; 59) जो अलीकवचन अर्थात् मिथ्याभाषण है, वह गुण-गौरव से रहित, हल्के, उतावले और चंचल लोगों द्वारा बोला जाता है, (स्व एवं पर के लिए) भय उत्पन्न करने के वाला, दुःखोत्पादक, अपयशकारी एवं वैर उत्पन्न करने वाला है। यह अरति, रति, राग, द्वेष और मानसिक संक्लेश को देने वाला है।शुभ फल से रहित है। धूर्तता एवं अविश्वसनीय # वचनों की प्रचुरता वाला है। नीच जन इसका सेवन करते हैं। यह नृशंस, क्रूर अथवा ॐ निन्दित है। यह अप्रतीतिकारक है-विश्वसनीयता का विघातक है। यह उत्तम साधुजनों-' सत्पुरुषों द्वारा निन्दित है। दूसरों को- जिनको लक्ष्य कर असत्यभाषण किया जाता है, उनको-पीड़ा उत्पन्न करने वाला है। यह उत्कृष्ट कृष्णलेश्या से सहित है अर्थात् कृष्णलेश्या है ॐ वाले लोग इसका प्रयोग करते हैं। यह दुर्गतियों में निपात को बढ़ाने वाला-बारंबार 卐 दुर्गतियों में ले जाने वाला है। यह भव -पुनर्भव करने वाला अर्थात् जन्म-मरण की वृद्धि करने वाला है। यह चिरपरिचित है-अनादि काल से जीव इसके अभ्यासी हैं। यह 卐 निरन्तर साथ रहने वाला है और बड़ी कठिनाई से इसका अन्त होता है अथवा इसका परिणाम अतीव अनिष्ट होता है। REFEREFEREN EURSEENERFEEEEEEEN (जैन संस्कृति खण्ड/178
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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