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________________ mes-PARADEpbouEUTERPRIF जनगणनगानगर O हिंसात्मक विशिष्ट क्रियास्थानों का आगगिक वर्णन {289) . .. [कर्म-बंध की कारणभूत क्रियाएं अनेक हैं, उनकी पृष्ठभूमि में विद्यमान विविध कारणों/स्थानों (हिंसा, लोभ आदि) के आधार पर उन 'क्रियास्थानों' को तेरह वर्गों में विभाजित किया गया है। उनमें से बारह क्रियास्थानों का सम्बन्ध निरर्थक असंयत हिंसाकारी प्रवृत्ति, जान-बूझ कर हिंसा की प्रवृत्ति, अन्य हिंसात्मक (अप्रशस्त) कषायों/ मनोविकारों से है, उन्हें यहां वर्णित किया जा रहा है:-] 1. अहावरे चउत्थे दंडसमादाणे अकस्माद् दंडवत्तिए त्ति आहिजति। से श्री जहाणामए केइ पुरिसे कच्छंसि वा जाव वणविदुग्गंसि वा मियवित्तए मियसंकप्पे मियपणिहाणे मियवहाए गंता एते मिय त्ति काउं अन्नयरस्स मियस्स वधाए उसुं आयामेत्ता णं णिसिरेजा, से मियं वहिस्सामि त्ति कट्ट तित्तिरं वा वट्टगं वा चडगं वा卐 लावगं वा कवोतगं वा कविं वा कविंजलं वा विंधित्ता भवति; इति खलु से अण्णस्स अट्ठाए अण्णं फुसइ, अकस्माइंडे। म 2. जे जहाणामए केइ पुरिसे सालीणि वा वीहीणि वा कोद्दवाणि वा कंगूणि जवा परगाणि वा रालाणि वा णिलिजमाणे अन्नयरस्स तणस्स वहाए सत्थं णिसिरेज्जा, से सामगं मयणगं मुगुंदगं वीहिरूसितं कालेसुतं तणं छिंदिस्सामि त्ति कटु सालिं वा ॐ वीहिं वा कोद्दवं वा कंगुं वा परगं वा रालयं वा छिंदित्ता भवइ, इति खलु से अन्नस्स 卐 अट्ठाए अन्नं फुसति, अकस्मात् दंडे, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावजे त्ति आहिज्जति, चउत्थे दंडसमादाणे अकस्मात् दंडवत्तिए त्ति आहिते। .. ___ (सू.कृ. 2/2/ सू. 698) 1. जैसे कि कोई व्यक्ति नदी के तट पर अथवा द्रह (झील) पर ......कसी घोर दुर्गम जंगल में जा कर मृग (आदि प्राणी) को मारने की प्रवृत्ति करता है, मृग को मारने का 卐 संकल्प करता है, मृग का ही ध्यान रखता है, मृग का वधन करने के लए चल पड़ता है; 'यह मृग है' यों जान कर किसी एक मृग को मारने के लिए वह अपने धनुष पर बाण को OF खींच कर चलाता है, किंतु उस मृग को मारने का आशय होने पर भी उसका बाण लक्ष्य 卐 (वध्य जीवमृग) को न लग कर तीतर, बटेर (बतक), चिड़िया, लावक, कबूतर, बंदर या 卐 कपिंजल पक्षी को लग कर उन्हें बींध डालता है। ऐसी स्थिति में वह व्यक्ति दूसरे के लिए प्रयुक्त दंड से दूसरे का घात करता है, वह दंड (वध) इच्छा न होने पर भी अकस्मात् । 卐 (सहसा) हो जाता है, इसलिए इसे अकस्माइंड (प्रत्ययिक) क्रियास्थान कहते हैं। EFFERESEREE [जैन संस्कृति खण्ड/130 $$$听听听听听
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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