SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 與此巩巩巩巩巩听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 %%% %%% % %% %%%% %%% %%%%% % {204} कृपालुरकृतद्रोहस्तितिक्षुः सर्वदेहिनाम्। सत्यसारोऽनवद्यात्मा समः सर्वोपकारकः॥ कामैरहतधीर्दान्तो मृदुः शुचिरकिञ्चनः। अनीहो मितभुक् शान्तः स्थिरो मच्छरणो मुनिः॥ अप्रमत्तो गभीरात्मा धृतिमाञ्जितषड्गुणः। अमानी मानदः कल्पो मैत्रः कारुणिकः कविः॥ आज्ञायैवं गुणान्दोषान्मयाऽऽदिष्टानपि स्वकान्। धर्मान्संत्यज्य यः सर्वान्मां भजेत स सत्तमः॥ ___ (भा.पु. 11/11/29-32) (श्रीकृष्ण का उद्धव को कथन-) जो पुरुष कृपालु, द्रोह न करने वाला, सब पर क्षमा करने वाला, दृढ़ सत्यता से युक्त, ईर्ष्या इत्यादि दोषों से रहित, सब का उपकार करने वाला, कामविकार-रहित चित्तवाला, बाहरी इन्द्रियों को संयम में रखनेवाला, कोमलचित्त, सदाचारी, परिग्रह-हीन, निष्काम, प्राप्त भोजन से तृप्त, शान्तचित्त, अपने म धर्म में दृढ़, केवल मुझ (ईश्वर) पर आश्रित, विचारशील, सावधान, निर्विकार, दीनताशून्य, ॐ तथा क्षुधा, प्यास, शोक, मोह, वृद्धता व मृत्यु को कुछ न समझनेवाला, प्रतिष्ठा का * अनभिलाषी, औरों की प्रतिष्ठा करनेवाला, दूसरों को समझाने में समर्थ, धूर्ततारहित, 卐 करुणाशील और सत्यज्ञानी है तथा वेदरूप मेरी आज्ञा से सूचित अपने धर्मों के करने में 4 गुणों को एवं न करने में दोषों को जानता है, किन्तु उन सब धर्मों को छोड़ कर मेरी भक्ति करता है, वह श्रेष्ठ साधु है। 听听听听听听听听听听F听听听听听听听听听听听听听听乐听听听听听听坎贝贝听听听听听听听听听听听听。 {205} यस्मान्नोद्विजते लोको लोकानोद्विजते च यः। हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो यः स च मे प्रियः॥ ___ (म.भा. 6/36/15 गीता, 12/15) जिससे कोई भी जीव उद्वेग को प्राप्त नहीं होता और जो स्वयं भी किसी जीव से उद्वेग कोई ॐ प्राप्त नहीं होता, तथा जो हर्ष,अमर्ष, भय और उद्वेग आदि से रहित है, वही ईश्वर को प्रिय है। 明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明那 वैदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/66
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy