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________________ 明明明明明明宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪 {2 ढ़िया/अहिंसा का विशेष स्वरूप और उसके विविध व्यावहारिक रूप हिंसा का आधार: मानसिक विकाराकषाय 電巩巩巩埃垢听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 {155) शोकः क्रोधश्च लोभश्च कामो मानः परासुता। ईर्ष्या मोहो विधित्सा च कृपाऽसूया जुगुप्सुता॥ द्वादशैते महादोषा मनुष्यप्राणनाशनाः। एकैकमेते राजेन्द्र मनुष्यान् पर्युपासते। यैराविष्टो नरः पापं मूढ़संज्ञो व्यवस्यति॥ (म.भा. 5/45/1-2; 5/43/16-17 में आंशिक परिवर्तन के साथ) (ज्ञानी सनत्सुजात का कथन-)शोक, क्रोध, लोभ, काम, मान, अत्यन्त निद्रा, ईर्ष्या, 卐 मोह, तृष्णा, कायरता, गुणों में दोष देखना और निन्दा करना-ये बारह महान् दोष मनुष्यों के ॐ प्राणनाशक हैं। (तात्पर्य यह है कि क्रोध आदि कषाय/मनोविकार हिंसक हैं, जिसमें उत्पन्न होते हैं, वह तो अपने स्वरूप का घात करता ही है, अपने से सम्बद्ध व्यक्ति के लिए भी घातक सिद्ध क होते हैं।) क्रमशः एक के पीछे दूसरा आ कर ये सभी दोष मनुष्यों को प्राप्त होते जाते हैं, जिनके ॐ वश में होकर मूढ-बुद्धि मानव (हिंसा आदि) पापकर्म करने लगता है। {156} लोभात् क्रोधः प्रभवति लोभात् कामः प्रवर्तते। लोभान्मोहश्च माया च मानः स्तम्भः परासुता।। (म.भा. 12/158/4) लोभ से ही क्रोध प्रकट होता है, लोभ से ही काम की प्रवृत्ति होती है और लोभ से ही माया, मोह, अभिमान, उद्दण्डता तथा 'परासुता' अर्थात् दूसरों के प्राण-हरण की इच्छा ॐ आदि दोष प्रकट होते हैं। 第一步明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明 अहिंसा कोश/47]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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