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________________ < % %%%%%%%%% % % %%%% %% %%%%% %%% % {102} योऽहिंसकानि भूतानि हिनस्त्यात्मसुखेच्छया। स जीवंश्च मृतश्चैव न क्वचित्सुखमेधते॥ (म.स्मृ. 5/45) जो व्यक्ति अहिंसक जीवों का अपने सुख ( जिह्वास्वाद- शरीरपुष्टि आदि) की इच्छा * से वध करता है, वह जीता हुआ तथा मर कर भी कहीं पर सुख-समृद्धि नहीं प्राप्त करता। {103} प्राणिनां प्राणहिंसायां ये नरा निरताः सदा। परनिन्दारता ये वै ते वै निरयगामिनः॥ (प.पु. 2/96/7) जो लोग प्राणियों की प्राण-हिंसा में सदा लगे रहते हैं और जो पर-निन्दा में प्रवृत्त रहा करते हैं, वे निश्चय ही नरकगामी होते हैं। {104} हरति परधनं निहन्ति जन्तून् वदति तथाऽनृतनिष्ठराणि यश्च। अशुभजनितदुर्मदस्य पुंसः कलुषमतेर्हदि तस्य नास्त्यनन्तः॥ (वि.पु. 3/7/28) जो पुरुष दूसरों का धन हरण करता है, जीवों की हिंसा करता है तथा मिथ्या और कटु भाषण करता है, इन अशुभ कर्मों के कारण मदमत्त उस दुष्टबुद्धि के हृदय में भगवान् 'अनन्त' नहीं टिक सकते। {105) हिंसकान्यपि भूतानि यो हिनस्ति स निघृणः। स याति नरकं घोरं कि पुनर्यः शुभानि च?॥ (पं.त. 3/106) जो मनुष्य हिंसक प्राणियों को भी मारता है, वह निर्दयी होता है और वह भीषण नरक को प्राप्त होता है, तथा जो अहिंसक पशुओं को मारता है उसका तो # कहना ही क्या (वह तो घोर नरक को प्राप्त होता ही है)। E EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE अहिंसा कोश/29]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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