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________________ 乐乐听听听听听听听听听听听巩巩巩巩¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥%%%。 {76} कर्मणा मनसा वाचा सर्वावस्थासु सर्वदा। परपीड़न कुर्वन्ति, न ते यान्ति यमालयम्॥ (प.पु. 3/31/25) जो किसी भी स्थिति में कर्म, वाणी व मन से किसी को पीड़ित नहीं करते, वे कभी यमलोक में नहीं जाते। {771 यो बन्धनवधक्लेशान् प्राणिनां न चिकीर्षति। स सर्वस्य हितप्रेप्सुः सुखमत्यन्तमश्रुते॥ (म.स्मृ. 5/46) जो जीवों का वध व बन्धन नहीं करना चाहता है, वह सब का हिताभिलाषी व्यक्ति अत्यन्त सुख प्राप्त करता है। 178) यद्ध्यायति यत्कुरुते धृतिं बध्नाति यत्र च। तदवाप्नोत्ययत्नेन यो हिनस्ति न किंचन॥ (म.स्मृ. 5/47) जो किसी की हिंसा नहीं करता, वह जिसका चिन्तन करता है, जो कार्य करता है और जिस (परमात्मचिन्तन आदि) में ध्यान लगाता है; उन सबों को बिना (विशेष) प्रयत्न के ही प्राप्त कर लेता है। 呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢听听听听听听听听坎听听听听听听纸听听听听听听听听听听听听听听听听 {79} न हिंसयति यो जन्तून् मनोवाक्कायहेतुभिः। जीवितार्थापनयनैः प्राणिभिर्न स हिंस्यते॥ (म.भा.12/175/27) जो मनुष्य मन, वाणी और शरीर रूपी साधनों द्वारा प्राणियों की हिंसा नहीं करता, # जीवन और अर्थ का नाश करने वाले हिंसक प्राणी उसकी भी हिंसा नहीं करते हैं। % %%%%% %%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%% अहिंसा कोश/21]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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