SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ NEEEEEEEEEEEEEEEEEEEng {47} अहिंसा परमो यज्ञः, तथाऽहिंसा परं फलम्। अहिंसा परमं मित्रम्, अहिंसा परमं सुखम्॥ (म.भा.13/116/29) अहिंसा परम यज्ञ है, अहिंसा परम (उत्कृष्ट) फल है, अहिंसा परम मित्र है, और अहिंसा परम सुख है। {48} अहिंसा परमो धर्मः, अहिंसैव परं तपः। अहिंसा परमं दानम्, इत्याहुर्मुनयः सदा॥ (प.पु. 3/31/27) 'अहिंसा' परम धर्म है, परम तप है, परम दान है, ऐसा सदैव मुनियों का कहना है। 明明明明明明明明明乐乐乐玩玩乐乐玩乐乐乐乐乐乐听听听听听听纸纸纸折纸兵纸架架架架架加 ___{49} न भूतानामहिंसाया ज्यायान् धर्मोऽस्ति कश्चन। (म.भा.12/262/30) प्राणियों की हिंसा न करने से जिस 'अहिंसा' धर्म की सिद्धि होती है, उससे * बढ़ कर महान् धर्म कोई नहीं है। 明明明明明听听听听听听听听听听听听听听听听呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢乎 1503 अहिंसायाः परो धर्मो नास्त्यहिंसापरं सुखम्। (कू.पु. 2/11/15) अहिंसा से बढ़ कर दूसरा कोई न तो परम धर्म है और न ही उससे बढ़कर कोई (कार्य) परम सुख को देने वाला है। REEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEER अहिंसा कोश/13]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy