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________________ XXXXNEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEng {26} अहिंस्रस्य तपोऽक्षय्यमहिंस्रो यजते सदा। . (म.भा.13/116/31) जो हिंसा नहीं करता, उसकी तपस्या अक्षय होती है। हिंसा:धर्म नहीं, अधर्म है {27} हिंसा चाधर्मलक्षणा। . (म.भा. 14/43/21) "हिंसा' तो 'अधर्म' (ही) है। {28} हिंसया वर्तमानस्य व्यर्थो धर्मो भवेदिति। कुर्वन्नपि वृथा धर्मान्यो हिंसामनुवर्तते॥ (ना. पु. 2/10/7) हिंसा में जीने वाले व्यक्ति का धर्माचरण व्यर्थ हो जाता है, इसलिए जो भी 'हिंसा का आचरण करता है, वह धर्माचरण को व्यर्थ करता है। 明明明明明明垢玩垢明明明明明明明垢與乐呢呢呢呢呢呢呢明明明明明明明明垢明明明明明明明明劣劣劣垢乐 {29} हिंसया संयुतं धर्ममधर्मं च विदुर्बुधाः। (ना. पु. 2/10/9) हिंसा से समन्वित (तथाकथित) धर्माचरण को विद्वानों ने 'अधर्म' ही बताया है। {30) अभक्ष्यभक्षणं हिंसा मिथ्या कामस्य सेवनम्। परस्वानामुपादानं चतुर्धा कर्म कायिकम्॥ (स्कं. पु. 1/(2)/41/20) निरर्थक हिंसा, अभक्ष्य-भक्षण, काम-भोगादि का (अमर्यादित) सेवन, तथा दूसरों के धन को हड़प लेना- ये चार कार्य शारीरिक (पाप) हैं। 明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明、杀 [वैदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/8
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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