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________________ MAINEERIEREMEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEyme {19) ब्रह्मचर्येण सत्येन मखपंचकवर्तनैः॥ दानेन नियमैश्चापि क्षमा-शौचेन वल्लभ। अहिंसया सुशक्त्या च अस्तेयेनापि वर्तनैः॥ एतैर्दशभिरंगैस्तु धर्ममेवं प्रपूरयेत्॥ (प.पु.2/12/46-48) (विदुषी सुमना ब्राह्मणी का पति सोमशर्मा को कथन)-ब्रह्मचर्य, सत्य, पञ्च यज्ञ, *दान, नियम, क्षमा, शौच (शुद्धि), अचौर्य, सुशक्ति (आत्म-शक्ति, दम) व अहिंसा -ये धर्म के दस अंग हैं। इनसे धर्म को पूर्ण समृद्ध करे (अर्थात् इन सभी के अनुष्ठान से ही धर्म का सर्वांग रूप से अनुष्ठान सम्भव हो पाता है)। अहिंसा से समन्वित आचरण ही धर्म 片卡片頻挥挥货埃挥挥挥挥挥圳頻頻頻乐娱乐明垢玩垢玩垢玩垢垢坎坎明垢玩垢妮F垢玩垢明明明明垢 {20} अहिंसार्थाय भूतानां धर्मप्रवचनं कृतम्। यः स्यादहिंसासम्पृक्तः स धर्म इति निश्चयः॥ (म.भा.12/109/12) प्राणियों की हिंसा न हो ,इसी के लिये धर्म का उपदेश किया गया है; अतः जो अहिंसा से युक्त हो, वही धर्म है, ऐसा धर्मात्माओं का निश्चय है। {21} यत् स्यादहिंसासंयुक्तं स धर्म इति निश्चयः। अहिंसाय भूतानां धर्मप्रवचनं कृतम्॥ (म.भा.8/69/57) सिद्धान्त यह है कि जिस कार्य में हिंसा न हो, वही धर्म है। महर्षियों ने प्राणियों की हिंसा न होने देने के लिये ही (अर्थात् अहिंसा के प्रचार-प्रसार के लिए ही) उत्तम धर्म का # प्रवचन किया है। E EEEER EPEEEEEEEEEEEEEEE [वैदिक/बाह्मण संस्कृति खण्ड/6
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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