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{998} वाचा युद्धप्रवृत्तानां वाचैव प्रतियोधनम्। निष्क्रान्ताः पृतनामध्यान्न हन्तव्याः कदाचन॥ रथी च रथिना योध्यो गजेन गजधूर्गतः। अश्वेनाश्वी पदातिश्च पादातेनैव भारत॥
(म.भा. 6/1/28-29) जो वाग्युद्ध में प्रवृत्त हों, उनके साथ वाणी द्वारा ही युद्ध किया जाय। जो सेना से * बाहर निकल गये हों उनका वध कदापि न किया जाय। रथी को रथी से ही युद्ध करना
चाहिये, इसी प्रकार हाथीसवार के साथ हाथीसवार, घुड़सवार के साथ घुड़सवार तथा पैदल के साथ पैदल ही युद्ध करे।
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{999) यथायोगं यथाकामं यथोत्साहं यथाबलम्। समाभाष्य प्रहर्तव्यं न विश्वस्ते न विह्वले॥
(म.भा. 6/1/30) जिसमें जैसी योग्यता, इच्छा, उत्साह तथा बल हो, उसके अनुसार ही तथा विपक्षी को बताकर उसे सावधान करके ही, उसके ऊपर प्रहार किया जाय। जो विश्वास करके असावधान हो रहा हो अथवा जो युद्ध से घबराया हुआ हो, उस पर प्रहार करना उचित नहीं है।
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भग्नशस्त्रो विपन्नश्च कृत्तग्यो हतवाहनः। चिकित्स्यः स्यात् स्वविषये प्राप्यो वा स्वगृहे भवेत्॥ निर्वणश्च स मोक्तव्य एष धर्मः सनातनः। तस्माद् धर्मेण योद्धव्यमिति स्वायम्भुवोऽब्रवीत्॥
(म.भा. 12/95/13-14) जिसके शस्त्र टूट गये हों, जो विपत्ति में पड़ गया हो, जिसके धनुष की डोरी कट गयी हो तथा जिसके वाहन मार डाले गये हों, ऐसे मनुष्य पर भी प्रहार न करे। ऐसा पुरुष यदि अपने
राज्य में या अधिकार में आ जाये तो उसके घावों की चिकित्सा करानी चाहिये अथवा उसे में उसके घर पहुंचा देना चाहिये। उसे घाव आदि ठीक होने पर छोड़ देना चाहिए यह सनातनधर्म
है। अतः धर्म के अनुसार युद्ध करना चाहिये, यह स्वायम्भुव मनु का कथन है।
वैदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/294