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________________ 出。 {989} आपद्येव तु याचन्ते येषां नास्ति परिग्रहः । दातव्यं धर्मतस्तेभ्यस्त्वनुक्रोशाद् भयान्न तु ॥ जिन लोगों के पास कुछ भी संग्रह नहीं है, वे यदि आपत्ति के समय याचना करें तो उन्हें धर्म (कर्तव्य) समझ कर और दया करके ही देना चाहिये, किसी भय या दबाब में पड कर नहीं । दया- दान द्वारा निर्धन / अनाथों का पोषणः शासकीय कर्तव्य {990} अवृत्तिव्याधि - शोकार्ताननुवर्तेत शक्तितः ॥ आत्मवत् सततं पश्येदपि कीटपिपीलिकाम् । (म.भा.12/88/23) ( शु. नी. 3 / 10-11 ) जीविका से रहित तथा व्याधि या शोक से आर्त्त लोगों को यथाशक्ति सहायता पहुंचा कर राजा को उनका उपकार करना चाहिये, एवं कीड़े तथा चीटियों तक के भी सुखदुःखादि को अपनी ही तरह समझना चाहिये । {991} कृपणानाथवृद्धानां विधवानां च योषिताम् । योगक्षेमं च वृत्तिं च नित्यमेव प्रकल्पयेत् ॥ (म.भा. 12/86/24; अ. पु. 225/25; म. पु. 215/62) राजा को चाहिए कि वह दीन, अनाथ, वृद्ध तथा विधवा स्त्रियों के योगक्षेम एवं जीविका का सदा ही प्रबन्ध करे । {992} अनाथान् व्याधितान् वृद्धान् स्वदेशे पोषयेन्नृपः ॥ (म.भा. 13/145/पृ. 5950 ) राजा को चाहिये कि अपने देश में जो अनाथ, रोगी और वृद्ध हों, उनका स्वयं पोषण करे । अहिंसा कोश / 291]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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