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________________ NEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE {963} उपायाः साम दानं च भेदो दण्डस्तथैव च। सम्यक्प्रयुक्ताः सिद्धयेयुर्दण्डस्त्वगतिका गतिः॥ (या. स्मृ., 1/13/346) साम, दान, भेद और दण्ड-ये चार (शत्रु आदि को वश में करने के) उपाय हैं। इनका सुविचारपूर्वक विधिवत् प्रयोग करने पर सफलता प्राप्त होती है। इनमें दण्ड का तभी प्रयोग करे, जब अन्य कोई उपाय काम न करे। {964} सामादिदण्डपर्यन्तो नयः प्रोक्तः स्वयम्भुवा। तेषां दण्डस्तु पापीयांस्तं पश्चाद्विनियोजयेत्॥ (पं.त. 1/408) ब्रह्मा ने साम से लेकर दण्ड तक (साम, दाम, भेद, दण्ड)जितनी नीति कही हैं उसमें दण्ड-नीति सबसे पाप-पूर्ण है। अतः उसका प्रयोग सबसे अन्त में (साम, दाम आदि नीतियों के विफल होने पर)करना चाहिए। {965) अयुद्धेनैव विजयं वर्धयेद् वसुधाधिपः। जघन्यमाहुर्विजयं युद्धेन च नराधिप॥ (म.भा. 12/94/1) राजा युद्ध के सिवा किसी और ही उपाय से पहले अपनी विजय-वृद्धि की चेष्टा करे; युद्ध से जो विजय प्राप्त होती है, उसे अधम श्रेणी की बताया गया है। {966} अनित्यो विजयो यस्माद् दृश्यते युध्यमानयोः। पराजयश्च संग्रामे तस्मायुद्धं विवर्जयेत्॥ (म.स्मृ.-7/199) चूंकि युद्ध करते हुए दो पक्षों की विजय तथा पराजय अनिश्चित रहती है, इस कारण युद्ध का त्याग करे। 男男男男男男男男男男男男男男男男男男%%%%%%%%%%%%%%、 विदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/284
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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