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________________ MAEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEme अहिंसक व दयालु स्वभावः राजा के लिए अपेक्षित {935} आनृशंस्यं परो धर्मः सर्वप्राणभृतां यतः। तस्माद्राजाऽऽनृशंस्येन पालयेत्कृपणं जनम्॥ (शु.नी. 1/159) सभी प्राणियों के प्रति क्रूरता न करना (अर्थात् दया) ही परम धर्म है। अतः राजा क्रूरता छोड़ कर (दया-भाव के साथ) ही दीन और निःसहाय जन का पालन करे। {936} अदानेनापमानेन छलाच्च कटुवाक्यतः। राज्ञः प्रबलदण्डेन नृपं मुञ्चति वै प्रजा॥ (शु.नी. 1/140) राजा के दान न करने से, राजा द्वारा किये गये अपमान व छल से, उसके कटुवचन ॐ से, और उसके कठोरतम दण्ड से प्रजा उसे छोड़ देती है। ¥¥¥¥¥¥¥圳巩巩听听听听听听听听听听听听听听听呢呢呢呢呢呢呢圳垢妮妮妮妮妮妮妮妮妮妮妮妮F+ {937} न हि स्वसुखमन्विच्छन्पीडयेत्कृपणं जनम्। कृपणः पीड्यमानः स्वमृत्युना हन्ति पार्थिवम्॥ (शु.नी. 1/160) अपने सुख के लिए गरीब को कभी न सताये, क्योंकि सताया हुआ गरीब अपनी मृत्यु से राजा को नष्ट कर देता है। 1938} तस्मान्नित्यं दया कार्या चातुर्वर्ण्य विपश्चिता। धर्मात्मा सत्यवाकचैव राजा रञ्जयति प्रजाः॥ (म.भा.12/56/36) विद्वान राजा को चारों वर्गों पर सदा दया करनी चाहिये, धर्मात्मा और सत्यवादी ॐ नरेश ही प्रजा को प्रसन्न रख पाता है। %% %%% % %%% % % %%% %%%% %% %% %% %% %% % % अहिंसा कोश/275]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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