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________________ NEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEL (7) अहिँया और यज्ञीय विधान [अहिंसाप्रधान भारतीय संस्कृति में 'यज्ञ' के अनुष्ठान को महनीय स्थान प्राप्त है। पश-हिंसा यज्ञीय विधान का अंग हो ही नहीं सकती। 'अज्ञान' या अज्ञान-जनित भ्रांति के कारण 'पश-हिंसा'को कालान्तर में है यज्ञीय विधान से जोड़ने का प्रयास हुआ, किन्तु वह पूर्णतया निष्फल हुआ।जिन्होंने उक्त प्रयास किया, उनकी अधोगति हुई। यज्ञ हो या श्राद्ध आदि पित-यज्ञ हो, जीव-हिंसा सर्वतोभावेन वर्जित है, इसी प्रकार मांस-भक्षण या मांस-दान आदि भी वर्जित हैं। इसी तथ्य के पोषक कुछ विशिष्ट शास्त्रीय वचन यहां प्रस्तुत हैं-] 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐垢妮妮妮妮妮妮妮妮與F यज्ञ में जीव-हिंसा शास्त्र-सम्मत नहीं {911) श्रूयते हि पुरा कल्पे नृणां व्रीहिमयः पशुः। येनायजन्त यज्वानः पुण्यलोकपरायणाः॥ ऋषिभिः संशयं पृष्टो वसुश्चेदिपतिः पुरा। अभक्ष्यमपि मांसं यः प्राह भक्ष्यमिति प्रभो॥ आकाशादवनिं प्राप्तस्ततः स पृथिवीपतिः। एतदेव पुनश्चोक्त्वा विवेश धरणीतलम्॥ __(म.भा. 13/115/49-51) सुना है, पूर्वकल्प में मनुष्यों के यज्ञ में पुरोडाश आदि के रूप में अन्नमय पशु का ॥ ही उपयोग होता था। पुण्यलोक की प्राप्ति के साधनों में लगे रहने वाले याज्ञिक पुरुष उस + अन्न के द्वारा ही यज्ञ करते थे। प्राचीन काल में ऋषियों ने चेदिराज वसु से अपना संदेह पूछा # था। उस समय वसु ने मांस को भी, जो सर्वथा अभक्ष्य है, भक्ष्य बता दिया था। उस समय आकाशचारी राजा वसु अनुचित निर्णय देने के कारण आकाश से पृथ्वी पर गिर पड़े थे। बाद में पृथ्वी पर भी फिर यही निर्णय देने के कारण वे पाताल में समा गये थे। {912} नवधः पूज्यते वेदे, हितं नैव कथंचन॥ (म.भा. 6/3/54) वेद में हिंसा की प्रशंसा नहीं की गई है। हिंसा से किसी प्रकार का हित/ कल्याण भी नहीं हो सकता। पEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEENA अहिंसा कोश/259]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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