SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 287
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 他明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明男%%%% {904} अभयं सर्वभूतेभ्यो यो ददाति महीपते। स गच्छति परं स्थानं विष्णोः पदमनामयम्॥ (म.भा. 11/7/25) जो सम्पूर्ण प्राणियों को अभयदान देता है, वह भगवान् विष्णु (परामात्मा)के अविनाशी परमधाम में चला जाता है। {905} यस्मादण्वपि भूतानां द्विजान्नोत्पद्यते भयम्। तस्य देहाद्विमुक्तस्य भयं नास्ति कुतश्चन॥ (म.स्मृ.-6/40) जिस द्विज से जीवों को लेशमात्र भी भय नहीं होता, शरीर से विमुक्त (मरे) हुए उस द्विज को (परलोक आदि में) कहीं से भी भय नहीं होता (अर्थात् वह सर्वदा के लिये निर्भय # हो जाता है)। 七FFFF垢垢折折纸折纸垢听听听听听听坎坎坎折纸圳到與明明媚垢玩垢听听听听听听垢垢玩垢玩垢玩垢垢 {906} दानं हि भूताभयदक्षिणायाः सर्वाणि दानान्यधितिष्ठतीह। तीक्ष्णां तनुं यः प्रथमं जहाति सोऽनन्त्यमाप्नोत्यभयं प्रजाभ्यः॥ (म.भा. 12/245/26) इस जगत् में जीवों को अभय की दक्षिणा देना सब दानों से बढ़कर है। जो पहले भ से ही हिंसा का त्याग कर देता है, वह सब प्राणियों से निर्भय होकर मोक्ष प्राप्त कर लेता है। {907} अभयं सर्वभूतेभ्यो दत्त्वा यः प्रव्रजेद् द्विजः। लोकास्तेजोमयास्तस्य प्रेत्य चानन्त्यमश्नुते।। (म.भा.12/244/28) जो ब्राह्मण सम्पूर्ण प्राणियों को अभयदान देकर संन्यासी हो जाता है, वह मरने के पश्चात् तेजोमय लोक में जाता है और अन्त में मोक्ष प्राप्त कर लेता है। % %%%% %%%% % % %%% %%% %%%%% %% %% %% % % अहिंसा कोश/257]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy