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________________ %%%%%%%%%%%%%%%%男男男男男男男男男男男男男男男%%%% {867} रागद्वेषविमुक्तात्मा, समलोष्टाश्मकाञ्चनः॥ प्राणिहिंसा-निवृत्तश्च, मौनी स्यात्सर्वनिःस्पृहः। दम्भाहंकारनिर्मुक्तो निन्दापैशन्यवर्जितः। आत्मज्ञानगुणोपेतः, यतिर्मोक्षमवाप्नुयात्॥ ___ (कू.पु. 2/28/18-19,22) संन्यासी को चाहिए कि वह राग-द्वेष से हीन हो, पत्थर व सोने में सम-भाव रखे, + प्राणियों की हिंसा से सर्वथा दूर रहे, मौन रखे तथा सभी पदार्थों से निःस्पृह/अनासक्त रहे। दम्भ व अहंकार से भी वह निर्मुक्त हो, पर-निन्दा व चुगलखोरी न करे, और आत्म-ज्ञान रूपी गुण से युक्त हो-ऐसा यति/संन्यासी मोक्ष को प्राप्त करता है। {868} अहिंसा सत्यमस्तेयं ब्रह्मचर्यं तपः परम्। क्षमा दया च सन्तोषो व्रतान्यस्य विशेषतः॥ (कू.पु. 2/28/27) अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य रूपी परम तप, क्षमा, दया, सन्तोष- ये सभी 'यति' के लिए विशेष व्रत रूप से पालनीय हैं। 编听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听贝贝听听听听听听听听听听听听听听明 {869) ब्रह्मचर्यमहिंसां च सत्यास्तेयापरिग्रहान्। सेवेत योगी निष्कामो योग्यतां स्वमनो नयन्॥ (वि.पु. 6/7/36) योगी को चाहिये कि अपने चित्त को ब्रह्म-चिन्तन के योग्य बनाता हुआ ब्रह्मचर्य, ॐ अहिंसा, सत्य, अस्तेय और अपरिग्रह का निष्कामभाव से सेवन करे। {870} त्रैवर्गिकांस्त्यजेत्सर्वानारम्भानवनीपते । मित्रादिषु समो मैत्रस्समस्तेष्वेव जन्तुषु॥ (वि.पु. 3/9/26) भिक्षु के लिए उचित है कि वह अर्थ, धर्म और काम रूप त्रिवर्ग सम्बन्धी समस्त कर्मों को छोड़ दे, शत्रु-मित्रादि में समान भाव रखे और सभी जीवों का सुहृद् हो। NEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEN अहिंसा कोश/247]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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