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________________ 巩巩巩巩乐乐乐%%%¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥乐坂$$$$$ . {831} अहिंसा सत्यवचनं दया भूतेष्वनुग्रहः। तीर्थानुसरणं दानं ब्रह्मचर्यममत्सरः॥ देवद्विजातिशुश्रूषा गुरूणां च भृगूत्तम। श्रवणं सर्वधर्माणां पितृणां पूजनं तथा॥ भक्तिश्च नृपतौ नित्यं तथा सच्छास्त्रनेत्रता। आनृशंस्यं तितिक्षा च तथा चास्तिक्यमेव च॥ वर्णाश्रमाणां सामान्यधर्मा धर्मं समीरितम्। (अ.पु. 151/3-6) सभी वर्गों के लिए और आश्रमों के लिए सामान्य धर्म इस प्रकार हैं:- अहिंसा, सत्यभाषण, दया , प्राणियों पर अनुग्रह, तीर्थाटन, दान, ब्रह्मचर्य, अमात्सर्य, देव, गुरु व ब्राह्मणों की सेवा, सभी धर्मों का श्रवण, पितृ-पूजन, राजा में भक्ति, तथा नित्य सच्छास्त्रों से मार्गदर्शन लेना, अक्रूरता (दया), सहनशीलता/क्षमा तथा आस्तिकता। 巩巩巩巩巩巩巩垢玩垢玩垢听听听听听听听听听垢坎坎听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听提 अहिंसा और ब्राह्मण वर्ण 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐听听听听听听听听垢听听听听听听听听听听听听听听 {832} सर्वभूतहितं कुर्यान्नाहितं कस्यचिद् द्विजः। मैत्री समस्तभूतेषु ब्राह्मणस्योत्तमं धनम्॥ (वि.पु. 3/8/24) ब्राह्मण को कभी किसी का अहित नहीं करना चाहिये और सर्वदा समस्त प्राणियों के हित में तत्पर रहना चाहिये। सम्पूर्ण प्राणियों में मैत्री रखना ही ब्राह्मण का परम धन है। 1833} अभयं सर्वभूतेभ्यः सर्वेषामभयं यतः। सर्वभूतात्मभूतो यस्तं देवा ब्राह्मणं विदुः॥ __ (म.भा.12/269/33) जो सम्पूर्ण भूतों से निर्भय है, जिससे समस्त प्राणी भय नहीं मानते हैं तथा जो सब 9 भूतों का आत्मा है, उसी को देवता ब्राह्मण/ब्रह्मज्ञानी मानते हैं। 勇 %%%%%%%%%%% %%%%%%%%%%%%%%%% % अहिंसा कोश/235]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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