________________
明明明明乐乐出出出出出出出出乐乐巩巩巩$$$%%%%%%%%%%%%。
{815}
स्त्रीहिंसा-धनहिंसा च प्राणिहिंसा तथैव च। त्रिविधां वर्जयन् हिंसां ब्रह्मलोकं प्रपद्यते।
(वि.ध. पु. 3/268/2) स्त्री-हिंसा, धन-हिंसा, प्राणी-हिंसा- इन तीन प्रकार की हिंसाओं का त्याग करने वाला ब्रह्म लोक को प्राप्त करता है।
अहिंसा और इन्द्रिय-निग्रह आदि धर्म (इन्द्रिय- संयम, दम, जितेन्द्रियता, ब्रह्मचर्य आदि)
[जब तक अहिंसा या दया, क्षमा आदि अहिंसक आचरण जीवन में नहीं आते, तब तक इन्द्रिय-निग्रह, इन्द्रिय-संयम, ब्रह्मचर्य, दम व जितेन्द्रियता आदि धर्मो की पूर्णता संभव नहीं है। इसी तथ्य को पुष्ट करने वाले कुछ शास्त्रीय वचन यहां प्रस्तुत हैं-]
¥¥¥頻頻頻垢妮妮頻頻頻垢玩垢玩垢玩垢玩垢玩垢听听听听听垢垢玩垢垢玩垢垢玩垢玩垢乐娱乐垢妮FFFF
{816} दमो ह्यष्टादशगुणः प्रतिकूलं कृताकृते। अनृतं चाभ्यसूया च कामार्थौ च तथा स्पृहा॥ क्रोधः शोकस्तथा तृष्णा लोभः पैशुन्यमेव च। मत्सरश्च विहिंसा च परितापस्तथाऽरतिः॥ अपस्मारश्चातिवादस्तथा सम्भावनाऽऽत्मनि। एतैर्विमुक्तो दोषैर्यः स दान्तः सद्भिरुच्यते॥
___(म.भा. 5/43/23-25) दम (इन्द्रिय-विजय) के लिए अठारह गुण अपेक्षित हैं। निम्नलिखित अठारह दोषों # के त्याग से ही अठारह गुण उत्पन्न हो सकते हैं (1) हिंसा संबंधी दुष्प्रवृत्ति (2) कर्त्तव्य
अकर्तव्य के विषय में विपरीत धारणा, (3)असत्यभाषण, (4)गुणों में दोषदृष्टि, (5) स्त्रीविषयक कामना, (6) सदा धनोपार्जन में ही लगे रहना, (7) भोगेच्छा, (8) क्रोध, (9)
शोक, (10) तृष्णा, (11) लोभ, (12) चुगली करने की आदत, (13) डाह, (14) संताप, 4 (15) शास्त्र में अरति, (16) कर्त्तव्य की विस्मृति, (17) अधिक बकवाद और (18) अपने
को बड़ा समझना-इन दोषों से जो मुक्त है, उसी को सत्पुरुष दान्त (जितेन्द्रिय) कहते हैं।
明明明明明明明明听听听听听听听听听听听听听听听听呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢
अहिंसा कोश/229]