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________________ 明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明男男男男男男% %%%%%%%听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 दान धर्म की महत्ता और उसके महनीय फल 1764} यद्ददाति विशिष्टेभ्यो यच्चानाति दिने दिने। तच्च वित्तमहं मन्ये शेषं कस्याभिरक्षति।। यद्ददाति यदनाति तदेव धनिनो धनम्। अन्ये मृतस्य क्रीडन्ति दारैरपि धनैरपि।। किं धनेन करिष्यन्ति देहिनोऽपि गतायुषः। यवर्द्धयितुमिच्छन्तस्तच्छरीरमशाश्वतम् ॥ अशाश्वतानि गात्राणि विभवो नैव शाश्वतः। (वे. स्मृ., 4/16-19) ___ जो पास में रहने वाला धन विशिष्ट योग्य व्यक्तियों को दान रूप में दे दिया जाता है और जिसका प्रतिदिन अपने भोजनादि में व्यय किया जाता है, वास्तव में उसी धन को th मैं धन मानता हूं। उसके अतिरिक्त धन की रक्षा किसलिए की जाती है? अर्थात शेष धन ॐ व्यर्थ ही रहता है। जो दान में दिया जावे और जिसका भोजनादि कार्य में स्वयं उपभोग करले, वही वस्तुतः धनी पुरुष का अपना धन है, बाकी जो धन या स्त्री-वर्ग बचा रहता है, 卐 वह मरने के पश्चात् दूसरे लोगों के ही काम में आता है। क्षीण आयु वाले देहधारी धन को बचा कर क्या करेंगे? जिस शरीर के उपयोग के लिए धन-वृद्धि की इच्छा किया करते हैं, * वह शरीर तो सर्वदा नहीं रहने वाला, अनित्य एवं नाशवान् है। 中医垢玩垢期货明明明明明听听听听听听¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥听听听听听听¥¥¥¥¥听听听听听听听听听听形 {765} ये याचिताः प्रहृष्यन्ति प्रियं दत्वा वदन्ति च॥ त्यक्तदानफलेच्छाश्च ते नराः स्वर्गगामिनः॥ (प.पु. 2/96/32) ___ जो लोग किसी के मांगने पर हर्षित होकर देते हैं, दे कर प्रिय बोलते भी हैं और जिन्हें दान के फल की इच्छा भी नहीं होती, वे स्वर्गगामी होते हैं। {766} नास्ति दानात् परं मित्रमिह लोके परत्र च। (अ. स्मृ. 150) - इस लोक और परलोक दोनों ही में, दान से बढ़ कर कोई मित्र (हितकारी)नही है। 男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男、 वैदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/214
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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