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________________ अहिंसा की सहज अभिव्यक्तिः अनुकम्पादान व अभयदान {738} अनाथान् पोषयेद् यस्तु कृपणान्धकपङ्गुकान्। स तु पुण्यफलं प्रेत्य लभते कृच्छ्रमोक्षणम् ॥ वेदगोष्ठाः सभाः शाला भिक्षूणां च प्रतिश्रयम् । यः कुर्याल्लभते नित्यं नरः प्रेत्य शुभं फलम् ॥ (म.भा. 13/145/पृ.6000 ) जो अनाथ, दीन-दुखियों, अन्धों और पंगु मनुष्यों का पोषण करता है, वह मृत्यु के पश्चात् उसका पुण्यफल पाता और संकट से मुक्त हो जाता है। जो मनुष्य वेदविद्यालय, सभाभवन, धर्मशाला तथा भिक्षुओं के लिये आश्रम बनाता है, वह मृत्यु के पश्चात् शुभफल पाता है। {739} कुटुम्बिने सीदते च ब्राह्मणाय महात्मने । दातव्यं भिक्षवे चान्नमात्मनो भूतिमिच्छता ॥ ( म.भा. 13/63/9) अपने कल्याण की इच्छा रखने वाले मनुष्य को चाहिये कि वह अन्न के लिये दु:खी, बाल-बच्चों वाले, महामनस्वी ब्राह्मण को और भिक्षा माँगने वाले को भी अन्नदान करे । {740} अभयं सर्वभूतेभ्यो व्यसने चाप्यनुग्रहः । यच्चाभिलषितं दद्यात् तृषितायाभियाचते ॥ दत्तं मन्येत यद् दत्त्वा तद् दानं श्रेष्ठमुच्यते । दत्तं दातारमन्वेति यद् दानं भरतर्षभ ॥ ( म.भा. 13/59/3-4) सम्पूर्ण प्राणियों को अभयदान देना, संकट के समय उन पर अनुग्रह करना, याचक को उसकी अभीष्ट वस्तु देना तथा प्यास से पीड़ित होकर पानी माँगने वाले को पानी पिलाना उत्तम दान है और जिसे देकर दिया हुआ मान लिया जाय अर्थात् जिसमें कहीं भी ममता की गंध न रह जाय, वह दान श्रेष्ठ कहलाता है। वही दान दाता का अनुसरण करता है । 過, अहिंसा कोश / 207]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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