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________________ %%% %% %%%%% % %%%%% %% % अहिंसा-पालन में सहयोगी: दान धर्म {732} दृढ़कारी मृदुर्दान्तः क्रूराचारैरसंवसन्। अहिंस्रो दमदानाभ्यां जयेत्स्वर्गं तथाव्रतः॥ (म.स्मृ. 4/246) दृढ़कर्ता (विघ्नादि के आने पर भी प्रारम्भ किये गये कार्य को पूरा करने वाला), मनिष्ठरता से रहित, सुखदुःखादि द्वन्द्वों को सहने वाला, क्रूर आचरण वालों का साथ नहीं करने के ॐ वाला-ऐसा अहिंसक व्यक्ति दम (इन्द्रिय-संयम) व दान का व्रत धारण कर उक्त व्रत के प्रभाव से स्वर्ग को जीत लेता (प्राप्त करता) है। ___{733} तत्र वै मानुषाल्लोकाद् दानादिभिरतन्द्रितः। अहिंसार्थसमायुक्तैः कारणैः स्वर्गमश्नुते ॥ विपरीतैश्च राजेन्द्र कारणैर्मानुषो भवेत्। तिर्यग्योनिस्तथा तात विशेषश्चात्र वक्ष्यते॥ कामक्रोधसमायुक्तो हिंसालोभसमन्वितः। मनुष्यत्वात् परिभ्रष्टस्तिर्यग्योनौ प्रसूयते॥ (म.भा. 3/181/10-12) दान आदि कार्य अहिंसा की सार्थकता हेतु आयोजित किये जाते हैं, इन दान आदि कार्यों में जो व्यक्ति आलस्य/प्रमाद का त्याग कर प्रवृत्त होता है, वह इस मनुष्य लोक से * स्वर्ग लोक को प्राप्त करता है। राजेन्द्र ! इसके विपरीत कारण (हिंसक आचरण) उपस्थित के होने पर मनुष्य-योनि में तथा पशु-पक्षी आदि योनि में जन्म लेना पड़ता है। तात! पशु-पक्षी # आदि योनियों में जन्म लेने का जो विशेष कारण है, उसे भी यहां बतलाया जाता है। जो काम, क्रोध, लोभ और हिंसा में तत्पर होकर मानवता से भ्रष्ट हो जाता है, अपनी मनुष्य होने # की योग्यता को भी खो देता है, वही पशु-पक्षी आदि योनि में जन्म पाता है। {734} दण्डन्यासः परं दानम्। ___(भा.पु. 11/19/37) सब प्राणियों के प्रति द्रोह व हिंसक-वृत्ति का त्यागना ही परम दान है। (अर्थात् ॥ * उत्तम दान में अहिंसा का पालन आनुषंगिक रूप से होता है।) EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEES अहिंसा कोश/205] 垢玩垢听听听听听听听听听巩巩巩垢玩垢¥听听听听听听听听听听听听听明明明明听听听听听听听听听听听听
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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