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{681} क्षमाऽऽहिंसा क्षमा धर्मः क्षमा चेन्द्रियनिग्रहः॥ क्षमा दया क्षमा यज्ञः क्षमयैव धृतं जगत्।
(म.भा.13/वैष्णव धर्म पर्व/92/ पृ.6375) अहिंसा, धर्म और इन्द्रियों का संयम क्षमा के ही स्वरूप है। क्षमा ही दया और क्षमा ही यज्ञ है। क्षमा से ही सारा जगत् टिका हुआ है।
क्षमा से धर्म की पूर्णता
{682} क्षमा धर्मो ह्यनुत्तमः॥
(म.भा. 4/16/अ.,पृ.1890)
क्षमा सबसे उत्तम धर्म है।
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ब्रह्मचर्येण सत्येन मखपंचकवर्तनैः॥ दानेन नियमैश्चापि क्षमा-शौचेन वल्लभ। अहिंसया सुशक्त्या च अस्तेयेनापि वर्तनैः॥ एतैर्दशभिरंगैस्तु धर्ममेवं प्रपूरयेत्॥
__ (प.पु.2/12/46-48) ___(विदुषी सुमना ब्राह्मणी का पति सोमशर्मा को कथन)-ब्रह्मचर्य, सत्य, पञ्च यज्ञ, दान, नियम, क्षमा, शौच (शुद्धि), अचौर्य, सुशक्ति (आत्म-शक्ति, दम) अचौर्य व अहिंसा म -ये धर्म के दस अंग हैं । इनसे धर्म को पूर्ण समृद्ध करे (अर्थात् इन सभी के अनुष्ठान से ही ,
धर्म का सर्वांग रूप से अनुष्ठान सम्भव हो पाता है।
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{684} क्षमेदशक्तः सर्वस्य शक्तिमान् धर्मकारणात्। अर्थानों समौ यस्य तस्य नित्यं क्षमा हिता॥
(म.भा. 5/39/59, विदुरनीति 7/59) जो शक्तिहीन है, वह तो सब पर क्षमा करे ही; जो शक्तिमान है, वह भी धर्म की सिद्धि के लिये क्षमा करे। जिसकी दृष्टि में अर्थ और अनर्थ दोनों समान हैं, उसके तो हितकारिणी क्षमा सदा विद्यमान ही रहती है। ARYANEEEEEEEEEEEEEEEEEEEENA
अहिंसा कोश/193]
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