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हलमष्टगवं धन॑ षड्गवं जीवितार्थिनाम्। चतुर्गवं नृशंसानां द्विगवञ्च जिघांसिनाम्।।
__(आ. स्मृ. 1/23, अ. स्मृ 222-223; अ. पु. 152/4) हल को चलाने के कार्य में कृषक को वस्तुतः आठ बैल रखने चाहिएं-यही धर्म* सम्मत है। छ: बैलों से भी जो हल का काम लेते हैं, वे अपने जीविका-निर्वाह करने के
इच्छुक माने जाते हैं। चार बैलों से काम लेने वाले क्रूर होते हैं, और केवल दो बैलों से हल के द्वारा भूमि जुताई करने वाले जिघांसु (कसाई -बैलों को मार डालने का यत्न करने वाले) ॐ कहे जाते हैं।
{646} कुशैः काशैश्च बनीयाद् गोपशुं दक्षिणामुखम्।
(प.स्मृ. 9/34) कुश या घास की बनी रस्सियों से ही बैल या गाय को, उसे दक्षिण-मुख करते हुए, बांधे।
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क्षुधितं तृषितं श्रान्तं बलीव न योजयेत्। हीनाङ्गं व्याधितं क्लीबं वृषं विप्रो न वाहयेत्॥
(प.स्मृ. 2/3; ग.पु. 1/107/6 में पद्यार्ध समान) ब्राह्मण को चाहिए कि वह भूखे, प्यासे और थके हुए बैल को जूए में न जोते। जो बैल अङ्गहीन हो, अथवा रोगी हो, तथा क्लीब (बधिया किया गया) हो, उसे तो हल में - बांधना, जोतना ही नहीं चाहिये।
दया धर्म की महनीयता
{648} धर्मो जीवदयातुल्यो न क्वापि जगतीतले। तस्मात् सर्वप्रयलेन कार्या जीवदया नृभिः॥
(शि.पु. 2/5/5/16) इस जगती-तल में जीवदया के समान दूसरा कोई धर्म नहीं है, इसलिए सब प्रकार 卐 के प्रयत्न से लोगों द्वारा जीवदया करनी ही चाहिए।
男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男 विदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/184