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________________ AXEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEng {638} ये पुरा मनुजा भूत्वा घोरकर्मरतास्तथा। पशुपुंस्त्वोपघातेन जीवन्ति च रमन्ति च॥ एवंयुक्तसमाचाराः कालधर्म गतास्तु ते॥ दण्डिता यमदण्डेन निरयस्थाश्चिरं प्रिये॥ (म.भा.13/145/पृ. 5969) जो मनुष्य पहले भयंकर कर्म में तत्पर होकर पशु के पुरुषत्व का नाश करने अर्थात् 卐 पशुओं को बधिया करने के कार्य द्वारा जीवन निर्वाह करते और उसी में सुख मानते हैं, प्रिये! ऐसे आचरण वाले मनुष्य मृत्यु को पाकर यमदण्ड से दण्डित हो, चिरकाल तक नरक में निवास करते हैं। {6391 आहारं कुर्वतीं गांच पिबन्तीं यो निवारयेत्। दण्डैर्गास्ताडयेत् मूढो यो विप्रो वृषवाहकः। दिने दिने गवां हत्यां लभते नात्र संशयः॥ (ब्र.वै. 2/30/172-173) जो व्यक्ति खाती हुई या पीती हुई गौ को रोकता है, और जो विप्र दण्डों से गौ (या # बैल) को मारता-पीटता है, गाड़ी या बैल में बैल को जोतता है, उसे प्रतिदिन गो-हत्या का दोष लगता है- इसमें सन्देह नहीं। ___{640} वृषक्षुद्रपशूनां च पुंस्त्वस्य प्रतिघातकृत्। साधारणस्यापलापी. दासीगर्भविनाशकृत्॥ पितृपुत्रस्वसृभ्रातृदम्पत्याचार्यशिष्यकाः । एषामपतितान्योन्यत्यागी च शतदण्डभाक्॥ (या. स्मृ., 2/20/236-37) (1) बैल, एवं बकरे आदि छोटे पशुओं को बांझ बनाने वाला, (2) साधारण वस्तु 卐 के विषय में भी वञ्चना/ठगी करने वाला, (3) दासी के गर्भ को गिराने वाला, (4) पिता# पुत्र, भाई-बहिन, पति-पत्नी, आचार्य-शिष्य-इनमें से एक दूसरे को-जो पतित नहीं हुआ 4 है-त्यागने वाला (पत्नी को तलाक देने वाला पति, पति को तलाक देने वाली पत्नी आदि)ॐ ये सभी सौ पण (आर्थिक) दण्ड के भागी होते हैं। 常勇男男%%%%%%%%%%%%%%%%%%男男男男男男男男男男男男、 वैिदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/182
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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