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________________ %% %%% %%% %%%% 乐乐%%%%%%%%%%¥¥¥¥¥职% “ {586} पशवोऽपि वशं यान्ति दानश्च मृदुभाषणैः। (शु.नी. 3/86) पशु भी चारा देने एवं पुचकार कर बुलाने से वश में हो जाते हैं। फिर मनुष्यों के विषय में तो सोचना ही क्या है? {587} वाचा मित्राणि संदधति। ___ (ऐ. आ. 3/1/6) प्रिय वाणी से ही स्नेही मित्र एकत्र होते हैं। {588} 望呢呢呢呢呢呢呢听听听听听听听听听听听听听听听听听听听垢听听听听听听听乐乐听听听听听听听听垢玩垢 मार्दवं सर्वभूतेषु व्यवहारेषु चार्जवम्। वाक् चैव मधुरा प्रोक्ता श्रेय एतदसंशयम्॥ (म.भा.12/287/18) सम्पूर्ण प्राणियों के प्रति कोमलता का बर्ताव करना, व्यवहार में सरल होना तथा मीठे वचन बोलना-यह भी कल्याण का संदेहरहित मार्ग है। {589} न हीदृशं संवननं त्रिषु लोकेषु विद्यते। दया मैत्री च भूतेषु दानं च मधुरा च वाक्॥ (म.भा. 1/87/12, शु.नी. 1/171, तथा म. पु. 36/12 में परिवर्तित रूप में प्राप्त) # सभी प्राणियों के प्रति दया व मैत्री का बर्ताव, दान, और सबके प्रति मधुर वाणी का प्रयोग-इन कार्यों के समान तीनों लोकों में कोई वशीकरण मन्त्र नहीं है। 15903 मदरक्तस्य हंसस्य कोकिलस्य शिखंडिनः। हरंति न तथा वाचो यथा वाचो विपश्चिताम्॥ (शु.नी. 1/169) मद से युक्त हंस, कोकिल या मयूर की वाणी मन को उतना नहीं हरण करती है, + जितना कि अच्छे विद्वानों की वाणी (मन को प्रिय लगती है)। 玩玩玩乐乐玩玩玩玩乐乐听听听听听听听听听听听玩玩玩乐乐乐乐乐乐乐乐玩手游 अहिंसा कोश/165]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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