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________________ 乐乐明明明明明明明明明明明明明明乐乐乐乐乐乐乐虫虫听听听听听乐乐乐乐 (524 वर्जयेदुशती वाचं हिंसायुक्तां मनोनुदाम्। ' (म.भा.12/240/9) साधक को चाहिये कि मन को पीड़ा देने वाली हिंसायुक्त वाणी का प्रयोग न करे। {525} नित्यं मनोपहारिण्या वाचा प्रह्लादयेज्जगत्। उद्वेजयति भूतानि क्रूरवाग्धनदोऽपि सन्॥ __ (शु.नी. 1/166) हमेशा मनोहर वचनों से जगत् को प्रसन्न करना चाहिये, क्योंकि यदि धन देने वाला कुबेर के समान भी हो, परन्तु क्रूर वाणी बोलने से वह मनुष्यों को उद्विग्न ही करता है। “明明明明明明明明明明垢听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听老 ___{526} कोपात्कटूक्तिर्नियतं कटूक्त्या . शत्रुता भवेत्। तथा चाप्रियता सद्यः शत्रुः कः कस्य भूतले॥ को वा प्रियोऽप्रियः को वा किं मित्रं को रिपुर्भवेत्। इन्द्रियाणि च बीजानि सर्वत्र शत्रुमित्रयोः॥ ___ (ब्र.वै.पु. 4/24/64-65) ___ कोप से कटूक्ति निश्चय ही बोली जाती है, कटूक्ति से शत्रुता होती है और शत्रुता से तुरंत अप्रियता आ जाती है-नहीं तो पृथिवी पर कौन किसका शत्रु है? कौन प्रिय है और मैं # कौन अप्रिय? सर्वत्र शत्रु-मित्र होने में जिह्वा आदि इन्द्रियां ही कारण होती हैं। 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听學 {527} वैरं पञ्चसमुत्थानं तच्च बुध्यन्ति पण्डिताः। स्त्रीकृतं वास्तुजं वाग्जं ससापत्नापराधजम्॥ (म.भा.12/139/42) __ वैर पांच कारणों से हुआ करता है, इस बात को विद्वान् पुरुष अच्छी तरह जानते ॥ म हैं:- 1. स्त्री के लिये, (2) घर और जमीन के लिये, (3) कटोर वाणी के कारण, (4) # जातिगत द्वेष के कारण, और (5) किसी समय किये हुए अपराध के कारण। $%%%%男男男男男男男男男男男男宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪、 अहिंसा कोश/149]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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