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________________ - 明明明明明明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢 明明明明明明明明明明明男男男男男男男男男男%%%%%%%%%%%%% मद्य व मांस के त्याग की महिमा {448} यः सर्वमांसानि न भक्षयीत, पुमान् सदा भावितो धर्मयुक्तः । मातापित्रोरर्चिता सत्ययुक्तः, शुश्रूषिता ब्राह्मणानामनिन्द्यः॥ 'अक्रोधनो गोषु तथा द्विजेषु, धर्मे रतो गुरुशुश्रूषकश्च। यावजीवं सत्यवृत्ते रतश्च, दाने रतो यः क्षमी चापराधे॥ मृदुर्दान्तो देवपरायणश्च, सर्वातिथिश्चापि तथा दयावान्। ईदृग्गुणो मानवस्तं प्रयाति, लोकं गवां शाश्वतं चाव्ययं च॥ (म.भा. 13/73/11-15) जो सब प्रकार के मांसों का भोजन त्याग देता है, सदा भगवच्चिन्तन में लगा रहता ॥ म है, धर्मपरायण होता है, माता-पिता की पूजा करता, सत्य बोलता और ब्राह्मणों की सेवा में ॐ संलग्न रहता है, जिसकी कभी निन्दा नहीं होती, जो गौओं और ब्राह्मणों पर कभी क्रोध नहीं है करता, धर्म में अनुरक्त रहकर गुरुजनों की सेवा करता है, जीवन भर के लिये सत्य का व्रत + ले लेता है, दान में प्रवृत्त रहकर किसी के अपराध करने पर भी उसे क्षमा कर देता है, म जिसका स्वभाव मृदुल है,जो जितेन्द्रिय, देवाराधक, सब का आतिथ्य-सत्कार करने वाला * और दयालु है, ऐसे ही गुणों वाला मनुष्य उस सनातन एवं अविनाशी गो-लोक में जाता है। {449} मधु मांसंच ये नित्यं वर्जयन्तीह मानवाः। जन्मप्रभृति मद्यं च दुर्गाण्यतितरन्ति ते॥ (म.भा. 12/110/22) जो मानव जन्म से ही सदा के लिये मधु, मांस और मदिरा का त्याग कर देते हैं, वे दुस्तर दुःखों से छूट जाते हैं। 乐乐乐乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听听%%%%%%%%听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听非 {450} धन्यं यशस्यमायुष्यं स्वयं स्वस्त्ययनं महत्। मांसस्याभक्षणं प्राहुर्नियताः परमर्षयः॥ (म.भा. 13/11 नियम-परायण महर्षियों ने मांस-भक्षण के त्याग को ही धन, यश, आयु व स्वर्ग फ़ की प्राप्ति का प्रधान उपाय एवं परम कल्याण का साधन बताया है। वैदिक/ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/126
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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