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________________ 你 〇〇〇〇量: {392} अतिवादांस्तितिक्षेत नावमन्येत कञ्चन । न चेमं देहमाश्रित्य वैरं कुर्वीत केनचित् ॥ (भा.पु. 12/6/34) जो परमपद पाना चाहे वह दूसरों के दुर्वचन सहे, किसी का अपमान न करे और इस शरीर से किसी के साथ वैर भाव न रखे। {393} अनर्थाः क्षिप्रमायान्ति वाग्दुष्टं क्रोधनं तथा । ( म.भा. 5/38/35) जो बुरे वचन बोलने वाला और क्रोधी है, उसके ऊपर शीघ्र ही अनर्थ (संकट) टूट पड़ते हैं। {394} गुरूणामवमानो हि वध इत्यभिधीयते । गुरुजनों का अपमान ही उनका वध होना कहा जाता है । अहिंसक दृष्टि: अनुशासन में भी अपेक्षित {395} न कुर्यात्कस्यचित्पीडां सुतं शिष्यञ्च ताडयेत् । ( म.भा. 8/70/ 52 ) (कू.पु. 2/16/56) किसी को भी पीड़ित न करे, यहां तक कि अपने पुत्र व शिष्य की भी ताडना नहीं करे। {396} परस्य दण्डं नोद्यच्छेत् क्रुद्धो नैव निपातयेत् । (म.स्मृ. 4/164) गृहस्थ दूसरों के ऊपर डण्डा न उठावे तथा क्रोध कर दण्डे से किसी को न मारे। 線 अहिंसा कोश / 111]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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