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________________ 求求求求求與張巩巩巩巩巩巩巩巩巩听听听听听听听玩玩玩玩乐乐玩玩乐乐 {314} तपोभिर्यज्ञदानैश्च वाक्यैः प्रज्ञाश्रितैस्तथा। प्राप्नोत्यभयदानस्य यद् यत् फलमिहाश्रुते॥ (म.भा. 12/262/28) तप, यज्ञ, दान और ज्ञान संबंधी उपदेश के द्वारा मनुष्य यहां जो-जो फल प्राप्त करता है, वह सब उसे केवल 'अभय दान' से मिल जाता है। {315} लोके यः सर्वभूतेभ्यो ददात्यभयदक्षिणाम्। स सर्वयज्ञैरीजानः प्राप्नोत्यभयदक्षिणाम्॥ (म.भा. 12/262/29) जो जगत् में सम्पूर्ण प्राणियों को अभय की दक्षिणा देता है, वह मानों समस्त ॐ यज्ञों का अनुष्ठान कर लेता है तथा उसे भी सब ओर से अभय-दान प्राप्त हो जाता है। PHEEEEEEEEEEEEE卐卐EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEM {316} दानं भूताभयस्याहुः सर्वदानेभ्य उत्तमम्। __(म.भा. 12/262/33) प्राणियों को अभय-दान देना सब दानों में उत्तम कहा गया है। 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 अहिंसाः प्रशस्त मनोभावों की स्त्रोत (दया, करुणा, परदुःखकातरता, मैत्री आदि भाव) {317} दृते दूंह मा, मित्रस्य मा चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षन्ताम्,मित्रस्याहं चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षे। मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे। (य.36/18) __ हे देव! मुझे शुभ कर्म में दृढ़ता प्रदान करो। सभी प्राणी मुझे मित्र की दृष्टि से देखें। + मैं भी सब प्राणियों को मित्र की दृष्टि से देखू । हम सब एक दूसरे को परस्पर मित्र की दृष्टि # से देखें। 玩玩玩玩乐乐玩玩玩乐乐垢玩垢听听听听听听听听听听听听听听玩玩玩玩乐 वैदिक/ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/94
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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