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________________ XXXXXEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE अहिंसा के व्यावहारिक रूपः क्षमा, अभयदान, प्राणदान 與玩乐我乐乐架纸折纸玩乐玩玩乐乐玩玩乐乐乐听听听听听听听听听乐听听听听听听听听听听听听乐乐 {297) प्राणदानात् परं दानं न भूतं न भविष्यति। न ह्यात्मनः प्रियतरं किंचिदस्तीह निश्चितम्॥ अनिष्टं सर्वभूतानां मरणं नाम भारत। ___(म.भा.13/116/16-17) प्राणदान से बढ़कर दूसरा कोई दान न हुआ है और न होगा। अपने आत्मा से बढ़ कर प्रियतर वस्तु दूसरी कोई नहीं है। यह निश्चित बात है। किसी भी प्राणी को मृत्यु अभीष्ट नहीं है। {298} सर्वभूतेषु यः सम्यग् ददात्यभयदक्षिणाम्। हिंसादोषविमुक्तात्मा स वै धर्मेण युज्यते॥ (म.भा. 13/142/27) जो सम्पूर्ण प्राणियों को अभयदान कर देता है और (फलस्वरूप सभी) हिंसासम्बन्धी दोषों से विमुक्त हो जाता है, उसी को धर्म का फल प्राप्त होता है। %垢玩垢听听听听听听听听垢听听听听听听听听听听听听听垢听听听听听听听巩巩巩巩巩巩巩巩巩巩巩巩巩明 {299) सर्वभूतेषु यो विद्वान् ददात्यभयदक्षिणाम्। दाता भवति लोके स प्राणानां नात्र संशयः॥ (म.भा. 13/115/18) जो विद्वान् सब जीवों को अभयदान कर देता है, वह इस संसार में नि:संदेह प्राणदाता माना जाता है। {300} सर्वथा क्षमिणा भाव्यं तथा सत्यपरेण च। वीतहर्षभयक्रोधो धृतिमाप्नोति पण्डितः॥ (म.भा.12/162/20) मनुष्य को सदा क्षमाशील होना तथा सत्य में तत्पर रहना चाहिये। जिसने हर्ष, भय * और क्रोध तीनों को त्याग दिया है, उस विद्वान् पुरुष को ही 'धैर्य' की प्राप्ति होती है। %%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%男 %% %% % %%%%%% वैदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/90
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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