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________________ आश्रव संवर संसार में स्थित प्राणीयों को निरंतर अविरति-मिथ्यात्व-प्रमादकषाय तथा योग के कारण कर्म का आश्रव होता है। यह आश्रव । जीव को दुःख देने वाला है प्रभु द्वारा उपदिष्ट विरति-नियमपच्चकवाण के द्वारा आते हुए इन कर्मों को हम रोक सकते। | पूण्य - पाप दोनों परमार्थ से आत्मा को । अहितकर है। संवर कर्मों को रोकने का उपाय है। सामायिक प्रतिक्रमण इत्यादि। क्रिया के द्वारा जीव पर आते हुए कर्मों को रोक सकते है। नाव में छिद्र के द्वारा पानी का आगमन होता है वहीं छिद्र को ढकने से संवरित करने से आता हुआ पानी रूक जाता है। सम्यग दर्शन-ज्ञान-चास्त्रि द्वारा मिथ्यात्व आदि आश्रव द्वाररूकते है। निर्जरा निर्जरा यानि कर्मों को साफ करना । नाव में धूंसे हुए प्रविष्ट पानी को उलचना । तप के द्वारा बंधे हुए कर्मों को साफ किया जाता है। तप एक अद्वितीय शस्त्र है जो निकाचित तो अनिकाचित कर्मों को भी काटता है। यह तप बारह भेद से विभिन्न बताया गया है। अर्जुनमाली यक्ष के प्रविष्ट हो जाने के पश्चात् प्रतिदिन जो पंचेन्द्रिय मनुष्यों का घात करनेवाला घोर पापी था। प्रभू उपदेश से प्रतिबुद्ध होकर संयम का स्वीकार किया। तप - तपकर कर्मों का सफाया किया ... और मुक्ति सु स्व को प्राप्त कर गया। | HAMROHOROB0000000शिवम
SR No.016126
Book TitleAdhyatmik Gyan Vikas Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhratnavijay
PublisherRushabhratnavijay
Publication Year
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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