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________________ एकत्व जीव आया तब अकेला जायेगा तब भी अकेला आया लेकर खाली हाथ जायेगा लेकर खाली हाथ ॥ यह मेरा मैं इसका मालिक यह सब चीजे है क्षणिक न चलेगी साथ तेरे यहाँ से आया तब लाया था कहाँ से ? नमि राजर्षि को बिमारी में बोध हुआ ..! जहाँ अनेक है वहाँ कलेश है - आवाज है।। जहाँ एक है वहाँ सुख है - शान्ति है। तेरा साथी कोन है ? रेल गंदे शरीर में हम क्यों बंधे है ? शरीर अशुचि एवं अपवित्रता का भंडार है । आज जिसे हम बार-बार संवारते है वह शरीर क्षीण होने के स्वभाववाला है अशुचि से भरा हुआ है, मेक-अप करने के बाद भी कुछ समय के पश्चात् इसमें से बदबू आती है ऐसे शरीर पर हमें मोह क्यों करना ? गौरी चमड़ी के नीचे गंदगी दबी हुई है। चमड़ी छिद्र, नाककान-आँख-मुँह-गुदा आदि से मल श्लेष्म पसीना आदि निकलता रहता है। शरीर अशुचि एवं मल का भंडार है अशुचि कर्मों से लिप्त जीव शरीर प्राप्त करते है। शरीर के कारण विविध प्रकार की वेदना यातना भुगतनी पड़ती है किंतु आत्मा देह से भिन्न है यह विचारधारा हमें दुःख में दीन नहीं बनायेगी तो सुख में लीन नहीं बनने देगी। "मैं शरीर से भिन्न हूँ तो शरीर मेरे से भिन्न है।" अन्यत्व 0000000000000000000000000000000000000000000000dacodc0000000000000000000000dsunloinandanowanlonotvN ARAAAAAAAAAAAAAAAAAEOSसालसाला
SR No.016126
Book TitleAdhyatmik Gyan Vikas Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhratnavijay
PublisherRushabhratnavijay
Publication Year
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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