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हेमचन्द्रनानार्थ १४१
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दुर्गवर्त्मनि ॥५३॥ महारण्योपसर्गाद्योः काननेन विशेषयोः॥ काश्मीरं पौष्करे मूले टककुंकुमयोरपि ॥ ५३६ ।। कावेरी तु हरिद्रापविश्या पांसरिदंतरे ॥ किर्मीरः शवले दैत्ये किशोरोह यशावके । ५३७॥सूर्येपू न्यथकिंणरुर्धान्यप्पू केशरेऽपिच॥कुहरं गहरे कु
कुकुर वा कुबेरस्त धनदैनंदि पादपे ॥ परी जानुकोणी कुमारोऽश्वानुं चार के ५३९ ॥ युवराजेोशिशो स्कन्देशु के वरुणपात पे॥ कुमारंजात्य कनके कुमारीत्व पराजिता ॥ ५४० ॥ नदीभिद्रामतरु ॥ णीकन्यकानवमा ल्युमा ॥ जंबूद्वीप विभागश्वकुटीरड के वलेर ते ५४१ कुञ्जरोऽनेकपेकेशेकुञ्जराघात की डुमे। हज्जराघात की डुमे॥ पाटलाय कुठारुकीश या: कूवरः पुनः।। ५४॥ कु धिरेर म्ये केस रोनागकेसरे॥तुरंग सिंहयोः स्कन्ध केशेषुब कुलट मे ॥ ५४३ ॥ पुन्नागरक्षे कि जल्के स्या केसरंतु हिंगुनि ॥ केदारः क्षेत्रभिद्यालवालेशंकरशैलयोन ४४ केनारः कुम्भिनरकेशिरः कपाल संधिषु॥ कोटिरः शक्रगो पेस्यान्न कुलेपाकशासने ॥ ५७५॥ कोहारो नागरे कूपे पुष्करिण्याश्च नाटके ॥ खर्परस्तस्करे भिक्षापात्रे धूर्त कपालयोः॥ ५४६॥ रव पुरोभस्त के पूगे। लस के खपुरं घठे ॥ खर्जूरैरुप्यफलयोः खर्जूर की दक्षयोः ॥ ५४७ खेडाभ्रमभ्रावयवे स्त्रीणां दंतक्षतांतरे ॥ ख दिरी शा के खदिरोदता बनचन्द्रयोः॥ ५४८॥ खिंखिर स्तु शिवा भेदेख द्वांगेवारि बाल के खि खिरी वहुत्वे च गव्हरो बिल भयोः ।। ५४९|| कुत्रेभ्थगर्गरोमीने स्पा दुर्ग रीतुमंथनी ॥ गन्धारोराग सिन्दूर स्वरेषुनी वृदन्तरे ।। ५५५॥गाय त्री खदिरे छंदोविशेषेगी पुरंपुनः॥ मुस्तके हा नि पूरे वर्ष रस्तुनदां तरे॥ ५५॥ चलना रिध्वनौ घूकेचेदिर चन्द्र हस्तिनो चत्वरस्यास था श्लेषे स्थंडिलांगनयोरपि॥५५॥ चकुरः स्पन्दने वृक्षै चतुरीनेत्र गोचरे ॥ चटकारे चक्रगण्डावपि चातुर को यथा ॥ ५५३ ॥ चमस्वाम रेदैव्ये चमरीतुमृगांतरे ॥ चिकुरो हौ गृहबभौ केशेचंचल शैल योः ५४ पक्षिवृक्षभिदवा पिलिदिरोऽग्नौ परश्वधे। करवा लेचर ज्जैौचछिद रोवे रिधूर्त योः ॥ ५५५॥ छिदुरं छेदनद्रव्येजठरः कुक्षिबद्धयोः॥ क दिन
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