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शिबि
प्राचीन चरित्रकोश
शिबि
२. एक दैत्य, जो हिरण्यकशिपु का पुत्र था (म. आ. पक्षी इसकी शरण में आया, एवं उसने इसे इयेन को ५९.११)। किंतु पौराणिक साहित्य में इसे प्रह्लाद का पुत्र | समझाने के लिए कहा। कहा गया है (मत्स्य. ६.९; विष्णु. १.२१.१)। यह | इसके द्वारा प्रार्थना किये जाने पर श्येन ने इससे कहा, दुम राजा के रूप में पृथ्वी पर अवतीर्ण हुआ था (म. आ. 'अगर तुम इस कपोत के वजन के बराबर अपना मांस ६१.८)।
| काट कर मुझे दोंगे, तो मैं अपने भक्ष्य, इस कपोत को ३. तामस मन्वंतर का इन्द्र (वायु. ६२.४०)। छोड़ दूंगा'। इसने श्येन पक्षी की यह शर्त मान्य
४. (स्वा. उत्तान.) एक राजा, जो चाक्षुष मनु एवं कर दी, एवं अपने शरीर का मांस काट कर तराजु में नड्वला के पुत्रों में से एक था (भा. ४.१३.१६)। रखना प्रारंभ किया। पश्चात् शरीर के मांसखंड परेन
१. (सो. वृष्णि.) एक यादव राजा, जो वृष्णि एवं माद्री पड़ने पर,यह स्वयं ही तराजु के पलडे में जा कर बैठ गया। के पुत्रों में से एक था (मत्स्य. ४५.२)।
इसका यह आत्मनिरपेक्ष दातृत्त्व देख कर, इंद्र एवं. ६. पुरूरवस्वंशीय शिनि राजा का नामांतर (शिनि
| अग्नि इससे अत्यधिक प्रसन्न हुए, एवं उन्होंने इसे अनेका
नेक वर प्रदान किये (म. व. १३०.१९-२०: १३१, १. देखिये)
परि, १ क्र. २१ पंक्ति ५)। ____७. एक भाचार्य, जो शुनस्कर्ण बाष्कीह नामक आचार्य
महाभारत में अन्यत्र उपर्युक्त कथा इसकी न हो कर, का पिता था (शुनष्कर्ण बाष्कीह देखिये)।
इसके पुत्र वृषदर्भ की बतलायी गयी है (म. अनु. ६७) ८. भूतपूर्व पाँच इंद्रों में से एक, जो शिव की आज्ञा
| औदार्य की अन्य एक कथा-महाभारत में अन्यत्र से पृथ्वी पर अवतीर्ण हुआ था (म. आ. १९१६*)।
इसके औदार्य की एक अन्य कथा दी गयी है. जो उपर्युक्त शिवि औशीनर (औशीनरि)-एक सुविख्यात
कथा का ही अन्य रूप प्रतीत होता है । एक बार इसके दानशूर राजा, जो शिबि लोगों का सब से अधिक ख्यातनाम
पास एक ब्राह्मण अतिथि आया, जिसने इसके बृहद्गर्भ राजा था ( शिबि १. देखिये)। उशीनर राजा का पुत्र
नामक पुत्र का मांस भोजनार्थ माँगा । यह उसे पका कर होने के कारण, इसे 'औशीनर' अथवा 'औशीनरि'
सिद्ध कर ही रहा था, कि इतने में उस बाहण में इसके पैतृक नाम प्राप्त हुआ था। इसकी राजधानी शिवपुर में
अन्तःपुर, शस्त्रागार, एवं हाथी, एवं अश्वशाला आदि थी (ब्रह्मांड. ३.७४.२०-२३)।
को जलाना प्रारंभ किया। यह ज्ञात होते ही, अपने पुत्र वैदिक साहित्य में-एक वैदिक मंत्रद्रष्टा के नाते
का पका हुआ मांस अपने सर पर रख कर यह ब्राह्मण इसका निर्देश ऋग्वेद में प्राप्त है (ऋ. १०.१७९.१) के पीछे दौडा । उस समय उस ब्राह्मण ने वह मांस इसे यह इंद्र के कृपापात्र व्यक्तियों में से एक था, जिसने इसके ही भक्षण करने की आज्ञा दी। तदनुसार यह उसे लिए 'वशिष्ठिय' के मैदान में यज्ञ किया था, एवं इसे भक्षण करनेवाला ही था, कि इतने में ब्राह्मण ने संतुष्ट विदेशियों के आक्रमण से बचाया था (बौ. श्री. २१. हो कर इसका पुत्र पुनः जीवित किया, एवं इसे अनेका१८)।
| नेक वर प्रदान कर वह चला गया (म. शां. २२६, महाभारत एवं पुराण में--इस ग्रंथ में इसे उशीनर राजा | १९; अनु १३७.४)। एवं माधवी का पुत्र कहा गया है, एवं इसके औदाय की पुण्यशील राजा-महाभारत में इसे यथाति राजा अनेकानेक कथाएँ वहाँ प्राप्त हैं (म. उ. ११७.२०)। का पौत्र, एवं ययाति कन्या माधवी का पुत्र कहा गया पौराणिक साहित्य में इसकी माता का नाम दृषद्वती दिया है। अपनी माता की आज्ञा से इसने अपने वसुमनस्, गया है (वायु. ९९.२१-२३; ब्रह्मांड. ३.७४.२०-२३; अष्टक, एवं प्रतर्दन नामक तीन भाइयों के साथ एक मत्स्य ४८.१८)।
यज्ञ किया, जिसका सारा पुण्य इन्होंने स्वर्ग से अधःपतित औदार्य-इसके औदार्य की निम्नलिखित कथा सब से | हए अपने पितामह ययाति को प्रदान किया। इस प्रकार अधिक सुविख्यात है। एक बार इसकी सत्त्वपरीक्षा लेने | इन्होंने ययाति को पुनः एकबार स्वर्गप्राप्ति करायी के लिए अग्नि ने कपोत का, एवं इन्द्र ने बाज (श्येन) (माधवी देखिये )। पक्षी का रूप धारण किया, एवं श्येन पक्षी कपोत का पीछा ययाति के स्वर्गप्राप्ति के लिए इसने अन्तरिक्ष में स्थित करता हुआ इसके संमुख उपस्थित हुआ। उस समय कपोत | अपना सारा राज्य उसे प्रदान किया, ऐसा एक रूपकात्मक
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