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शांतनु .
प्राचीन चरित्रकोश
शान्ति
अपनी इस शर्त के अनुसार, गंगा ने इससे उत्पन्न | शांता-ऋश्यशंग ऋषि की पत्नी, जो वाल्मीकि सात पुत्र नदी में डुबो दिये। इससे उत्पन्न आठवाँ पुत्र रामायण एवं वायु के अनुसार रोमपाद राजा की गोद में ली भीष्म वह नदी में डुबोने चली । उस समय अपनी शर्त | हुई कन्या थी। रोमपाद राजा को 'चित्ररथ ' 'अंगराज' भंग कर, इसने उसे इस कार्य से परावृत्त करना चाहा।। 'लोमपाद' आदि नामांतर भी प्राप्त थे। इसके द्वारा शर्त का भंग होते ही, गंगा नदी अपने पुत्र मत्स्य एवं महाभारत में भी. इसे दशरथ राजा की को लेकर चली गयी।
कन्या कहा गया है (मत्स्य, ४८.९५) । रोमपाद राजा पश्चात् छत्तीस वर्षों के बाद, इसके द्वारा पुनः पुनः | दशरथ राजा का परम स्नेही था, एवं निपुत्रिक था, जिस प्रार्थना किये जाने पर गंगा नदी ने इसके पुत्र भीष्म को कारण दशरथ ने अपनी इस कन्या को रोमपाद राजा को इसे वापस दे दिया।
गोद में दे दी (भा. ९.२३.७-१०)। हरिवंश में लोमपाद सत्यवती से विवाह-एक बार सत्यवती नामक धीवर - | को दशरथ का ही नामांतर बताया गया है, किंतु वह सही कन्या से इसकी भेंट हुई, एवं उससे विवाह करने प्रतीत नही होता है (ह. बं. १.३१.४६) । आगे चल कर की इच्छा प्रकट की । उस समय, इसके पुत्र. भीष्म को | रोमपाद राजा ने इसका विवाह ऋश्यशंग ऋषि से कराया यौवराज्यपद से हटा कर; अपने होनेवाले. पुत्र को राज्य | (ऋश्यशंग एवं रोमपाद १. देखिये)। प्राप्त होने की शर्त पर सत्यवती ने इससे विवाह करने की २. भारद्वाज ऋषि की माता (वायु. १११.६०)। संमति दी। अपने प्रिय पुत्र को यह यौवराज्यपद से दूर शान्ति- दक्ष प्रजापति की कन्या, जो धर्म ऋषि की करना नहीं चाहता था, किंतु भीष्म ने अपूर्व स्वार्थ याग पत्नी थी। इसके पुत्र का नाम सुख (क्षेम) था (भा. कर, स्वयं ही राज्याधिकार छोड़ दिया।
४.१.४९; वायु. १०.२५)। परिवार—पश्चात् इसका सत्यवती से विवाह हुआ, २. कर्दम प्रजापति की क या, जो अथर्वन् ऋषि की पत्नी जिससे इसे विचित्रवीर्य एवं चित्रांगद नामक दो पुत्र | थी। इसकी माता का नाम देवहूति था। इसने पृथ्वी लोक उत्पन्न हुए। उनमें से चित्रांगद की रणभूमि में अकाल मृत्यु में यज्ञसंस्था का माहात्म्य संवर्धित किया था। इसके पुत्र हुई, जिस कारण उसके पश्चात् विचित्रवीर्य राजगद्दी पर का नाम दध्यच् आथर्वण था (भा. ३.२४.२४)। बट गया । इससे विवाह होने के पूर्व, सत्यवती को व्यास | ३. ( सो. नील.) एक राजा, जो भागवत के अनुसार नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था, किंतु यह घटना इसे ज्ञात नील राजा का पुत्र, एवं सुशांति राजा का पिता था (भा. न थी (दे. भा. २.३)।
९.२१.३०-३१)। अपने इन पुत्रों के व्यतिरिक्त इसने शरदत् गौतम । ४. एक तुषित देव, जो यज्ञ एवं दक्षिणा का पुत्र था ऋषि के कृप एवं कृपी नामक संतानों का अपत्यवत् | (भा. ४.१.७-८)। संगोपन किया था (शरदत् देखिये)।
५. एक ऋषि, जो वारुणि आंगिरस ऋषि के आठ पुत्रों . मृत्यु के पश्चात् , भीष्म के द्वारा दिये गये पिंडादन को | में से चतुर्थ पुत्र था। अग्निवंश में उत्पन्न होने के कारण, स्वीकार करने के लिए यह पृथ्वी पर स्वयं अवतीर्ण हुआ इसे 'आग्नेय' उपाधि प्राप्त थी (म. अनु. ८५.३०)। था। उस समय इसने उसे इच्छामरणी होने का वर प्रदान उपरिचर वसु राजा के यज्ञ में यह सदस्य बना था (म. दिया था (म. अनु. ८४.१५)।
शां. ३२३.८ पाठ.)। शांतपायन-एक आचार्य, जो विष्णु के अनुसार ६. ब्रह्मसावर्णि मन्वंतर का इंद्र (विष्णु, ३.२.२६)। व्यास की पुराण शिष्यपरंपरा में से रोमहर्षण नामक आचार्य यह सुधामन् एवं विरुद्ध देवों का इंद्र था (ब्रह्मांड. ४. का शिष्य था। पाठभेद-(वायुपुराण)-'शांशपायन'। १.६९)।
शांतमय-एक प्राचीन राजा (म. आ. १.१७६) ७. तामस मनु के पुत्रों में से एक (ब्रह्मांड. २.३६. पाठभेद-शांतभय'।
४१)। शांतरय(सो. आयु.) एक राजा, जो भागवत के ८. स्वारोचिष मन्वंतर का एक देव । अनुसार त्रिककुद् (धर्मसारथि ) राजा का पुत्र था (भा. ९. कृष्ण एवं कालिंदी के पुत्रों में से एक (भा. १०. ९.१७.१२)।
६१.१४)। ९६३