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________________ शशबिंदु प्राचीन चरित्रकोश शाकटायन एवं पुण्यशीलं राजा भी मृत्यु से नहीं बच सकते हैं, करनेवाले इसके पुत्रों में 'ककुत्स्थ ' प्रमुख था (मत्स्य. इस तत्त्व के प्रतिपादन के लिए नारद ने इसका जीवन- | ११.२६.२८)। चरित्र संजय को सुनाया था। रुद्रेश्वर-लिंग की आराधना शशि--(सो. क्रोष्ट.) यादववंशीय शुचि राजा का करने के कारण इसे राजकुल में जन्म प्राप्त हुआ था | नामांतर (शुचि १. देखिये )। मत्स्य में इसे अंधक राजा का पुत्र कहा गया है। परिवार–इसकी कुल दस हज़ार स्त्रियाँ थीं, जिनमें से | शशिकला-काशिराज सुबाहु राजा की कन्या, जो हर एक स्त्री से इसे दस हज़ार पुत्र उत्पन्न हुएं थे (म. शां. सूर्यवंशीय सुदर्शन राजा की पत्नी थी। २९.९८-९९)। इसके पुत्रों में पृथुश्रवस् , पृथुकीर्ति, एवं शशीयसी-तरंत राजा की पत्नी (ऋ. अनुक्रमणी पृथुयशस् प्रमुख थे। इसकी कन्या का नाम बिंदुमती था, | ५.६१.६)। जिसका विवाह मांधातृ राजा से हुआ था (भा. ९.६)। शश्वती आंगिरसी-एक वैदिक मंत्रद्रष्टी, जो आसंग इसकी संतानों की संख्या के संबंध में अतिशयोक्त | नामक ऋषि की पत्नी थी (ऋ. ८.१.३४)। वर्णन भागवतादि पुराणों में प्राप्त है, जहाँ इसकी संतानों शांवत्य-- एक आचार्य, जिसके यज्ञविषयक अनेकाकी कुल संख्या एक अब्ज बतायी गयी है (भा. ९.२३. | नेक मतों का निर्देश आश्वलायन गृह्यसूत्र में प्राप्त है। ३१-३३) । इस प्रकार, इस सृष्टि की सारी प्रजा शशबिदु 'झूलगव याग' में मारे गये पशु का चमड़ा पादत्राण की ही संतान कही गयी है। तैयार करने के लिए उपयोजित किया जा सकता है, ऐसा शशलोमन्--एक राजा, जिसने कुरुक्षेत्र के तपोवन इसका अभिमत था (आश्व. गृ. ९.२४)।। में तप कर के स्वर्ग प्राप्त कर लिया था (म. आश्व. | शांशपायन--एक पुराणप्रवक्ता आचार्य, जो व्यास २६.१४)। .. की पुराणशिष्यपरंपरा का एक शिष्य था। व्यास से इसे . शशाद--(सू. इ.) एक सुविख्यात इक्ष्वाकुवंशीय वायपुराण की संहिता प्राप्त हुई, जो इसने आगे चल कर राजा, जिसे 'विकुक्षि' नामांतर भी प्राप्त था (म. अपने पुत्र एवं शिष्य रोमहर्षण सूत को प्रदान की थी व. १९३.१)। यह इक्ष्वाकु राजा के सौ पुत्रों में से (वायु. १०३.६६-६७)। ज्येष्ठ पुत्र था, एवं उसीके पश्चात् राजगद्दी पर बैठा था शांशपायन सुशर्मन्--एक आचार्य, जो रोमहर्षण - (भा. ९.६.६-११)। | सूत नामक आचार्य के पुराणशिष्यपरंपरा का एक प्रमुख • इक्ष्वाकु का शाप-एक बार इसके पिता ने इसे वन | शिष्य था (ब्रह्मांड. २.३५.६३-७०; वायु. ६१.५५-६२ में जा कर कुछ मांस लाने के लिए कहा, जो उसे 'अष्टका | अमि. २७२.११-१२)। • श्राद्ध' करने के लिए आवश्यक था। अपने पिता की आज्ञा | संभवतः 'शांशपायन' इसका पैतृक नाम था. जो इसे के अनुसार यह वन में गया, एवं इसने दस हज़ार | शंशप का वंश होने के कारण प्राप्त हुआ होगा। प्राणियों का वध किया । पश्चात् अत्यधिक क्षुधा के कारण, पश्चात् अत्याधक क्षुधा के कारण, | शाकराक्ष--भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । यज्ञार्थ इकट्ठा किये गये मांस में से खरगोश का थोड़ासा शाकटायन--एक वैयाकरण, जो पाणिनि एवं मांस इसने भक्षण किया। यह ज्ञात होते ही इसके पिता ने | यास्क आदि आचार्यों का पूर्वाचार्य, एवं 'उणादिसूत्रइसे राज्य से बाहर निकाल दिया, एवं इसे 'शशाद' पाठ' नामक सुविख्यात व्याकरण ग्रंथ का कता माना व्यंजनात्मक नाम रख दिया। जाता है । पाणि नि के अष्टाध्यायी में इसे सारे व्याकरणअपने पिता की मृत्यु के पश्चात् यह अयोध्या के कारों में श्रेष्ठ कहा गया है (अनुशाकटायनं वैयाकरणाः; राजसिंहासन पर आरुढ़ हुआ, एवं शशाद नाम से ही | पा. सू. १.४.८६-८७)। इससे प्रतीत होता है कि, राज्य करने लगा। पाणि नि के काल में भी यह आदरणीय वैय्याकरण परिवार- इसके कुल पाँच सौ पुत्र थे, जिन में पुरंजय | माना जाता था। केशवकृत 'नानार्थाणव' में शाकटायन प्रमुख था (भा. ९.६.६-१२)। मत्स्य के अनुसार, इसे | को 'आदिशाब्दिक ( शब्दशास्त्र का जनक) कहा कुल १६३ पुत्र थे, जिन में से पंद्रह पुत्र मेरु पर्वत के | गया है । उत्तर भाग में, एवं उर्वरित १४८ मेरु के दक्षिण में नाम--पतंजलि के व्याकरण में इसके पिता का नाम स्थित प्रदेश में राज्य करने लगे । मेरु के दक्षिण में राज्य | शकट दिया गया है (महा. ३.३.१) । किंतु पाणिनि के प्रा. च १२०]
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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