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शंयु
प्राचीन चरित्रकोश
शंयु--एक आचार्य, जो एक विशिष्ट प्रकार के यज्ञ- महाभारत में इनका निर्देश वाहिक लोगों के साथ प्राप्त पद्धति का ज्ञाता माना जाता था। इसकी मृत्यु के पश्चात् है, एवं युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के समय, भीम के द्वारा वह यज्ञपद्धति नष्ट होने का धोखा निर्माण हुआ। इसी किये गये पूर्व दिग्विजय में इन्हें जीते जाने का निर्देश कारण इसके अनुगामियों ने वह ज्ञान पुनः प्राप्त करने वहाँ प्राप्त है (म. स. २७.२८९)। नकुल ने भी अपने का प्रयत्न किया था (श. ब्रा: १.९.१.२४)। पश्चिम दिग्विजय में इन्हें जीता था (म. स. २९. १५.
यजुर्वेद संहिताओं में इसे अग्नि का ही प्रतिरूप माना पाठ.)। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में ये लोग भेंट ले कर गया है (तै. सं. २.६.१०.१ ५.२.६.४; ते. ब्रा. ३.३. उपस्थित हुए थे (म. स. ५१.२६) ८.११; तै. आ. १.५.२)।
मत्स्यपुराण में इन्हें चक्षु नदी के तट पर निवास शंयु बार्हस्पत्य--एक वैदिक सूक्तद्रष्टा, जो बृहस्पति करनेवाले लोग कहा गया हैं, एवं तुषार, पह्लव, पारद, के पुत्रों में ज्येष्ठ पुत्र था (ऋ. ६.४४-४६, ४८)। ऊर्ज, औरस लोगों के साथ इनका निर्देश प्राप्त है (मत्स्य, शतपथ ब्राहाण में निर्दिष्ट शग्यु बार्हस्पत्य एवं यह दोनों १२१.४५-५१)। माकंडेय में इन्हे सिधुदेशनिवासी एक ही होंगे (श. बा. १.९.१.२५)।
कहा गया है (मार्क. ५७.३९)। पौराणिक साहित्य में इसे एक अग्नि कहा गया है, एवं 'अलाहाबाद प्रशस्तिलेख' से प्रतीत होता है कि, समुद्र इसकी माता एवं पत्नी का नाम क्रमशः तारा, एवं धर्मकन्या गुप्त के द्वारा परास्त हुए विजातीय लोगों में शक मुरुंड लोग सत्या दिया गया है। अपनी इस पत्नी से इसे भरत एवं प्रमुख थे । कई लभ्यासकों के अनुसार, यहाँ मुझंड' शब्द भारद्वाज नामक दो पुत्र, एवं अन्य तीन कन्याएँ उत्पन्न हुई का अर्थ 'राजा' अभिप्रेत है, एवं सुराष्ट्र प्रदेश में रहने (म. व. २०९.२-५)।
वाले शक लोगों के राजाओं की ओर इस शिलालेख में चातुर्मास्यसंबंधित यज्ञों में एवं अश्वमेध यज्ञ में इसका
इसका संकेत किया गया है। पूजन किया जाता है।
महाभारत में इन्हें नंदिनी गाय के गोबर से होने का शंसपि--शंखमत् नामक अंगिराकुलोत्पन्न गोत्रकार निर्देश प्राप्त है (म. आ. १६५.३५)। इस निर्देश से का नामांतर (शंखमत् देखिये )।
प्रतीत होता है कि, ये लोग महाभारतकाल में निंद्य माने शक-एक विदेशीय जातिसमूह, जो पूर्वकाल में
में जाते थे। ये लोग पहले क्षत्रिय थे, किन्तु बाद में ये शुद्ध मध्य एशिया के निवासी थे । आगे चल कर ये लोग बन (म. अनु. २३.२१)। उत्तर पश्चिम भारत में आ कर रहने लगे। । भारतीय युद्ध में--इस युद्ध में, ये लोग कांबोजराज
ये लोग ई. पू. २ री शताब्दी में इरान के पूर्व भाग सुदक्षिण के साथ दुर्योधन के पक्ष में शामिल थे (म. उ. में स्थित प्रदेश में रहते थे, जिस कारण उस प्रदेश को १९.२१)। सात्यकि ने इन लोगों का संहार किया था 'शकस्तान' अथवा 'सीस्तान' कहते थे। ई. स. प. (म. द्रो. ९५.३८)। कर्ण ने भी इन्हें परास्त किया था. १७४ में हूण लोगों के आक्रमण के कारण, शक लोग (म. क. ५.१८)। शकस्तान छोड़ने पर विवश हुए, एवं उत्तर पश्चिम भारत । भागवत के अनुसार, शक एवं यवन लोग हैहय राजाओं में आ कर निवास करने लगे। आगे चल कर ये सुराष्ट्र के सहायक थे। इसी कारण परशुराम, सगर एवं भरत (काठियवाड ) में रहने लगे।
राजाओं ने इन्हें परास्त किया था, एवं इनकी अर्धस्मश्रु उत्तरपश्चिम भारत में निवास--राजशेखर की काव्य-कर, एवं विरूप कर इन्हें छोड़ दिया था ( भा. ९.)। मीमांसा में उत्तरपश्चिम भारत में निवास करनेवाले लोगों इन लोगों को वेदाधिकार प्राप्त नहीं था, जिस कारण ये में शक लोगों का निर्देश हूण, कांबोज एवं वालिक लोगों | आगे चल कर म्लेच्छ बन गये थे (भा. ४.३.४८)। के साथ प्राप्त है। पतंजली के व्याकरण महाभाष्य में २. (मौय. भविष्य, एक राजा, जो वृहद्रथ मौय राज इनका निर्देश प्राप्त है (पा. स. ३.७५ भाष्य.)। का पुत्र था (मत्स्य. २७२.२४)।
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