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________________ व्यास - प्राचीन चरित्रकोश व्यास गये है:--आखेटक, आंगिरस, आण्ड, आद्य, आदित्य, रोमहर्षण शाखा--रोमहर्षण के शिष्यों में निम्नलिखित उशनस् , एकपाद, एकाम्र, कपिल, कालिका, काली, कौमार, | आचार्य प्रमुख थे:-- १. सुमति आत्रेय (त्रैयारुणि); कौर्म, क्रियायोगसार, गणेश, गरुड, दुर्वास, देवी, दैव, २. अकृतव्रण काश्यप (कश्यप); ३. अग्निवर्चस् भारद्वाज; धर्म, नंदी, नारद, नृसिंह, पराशर, प्रभासक, बार्हस्पत्य, | ४. मित्रयु वासिष्ठः ५. सोमदत्ति सावणि (ब्रह्मांड. २.३५. बृहद्धर्म, बृहन्नंदी, बृहन्नारद, बृहन्नारसिंह, बृहद्वैःणव, | ६३-६६; भा. १२.६ ); ६. सुशर्मन् शांशपायन (शांतब्रह्मांड, भागवत ( देवी अथवा विष्णु), भार्गव. भास्कर, पायन) (वायु. ६१.५५-५७; विष्णु. ३.६.१५-१८); मानव, मारीच, माहेश, वसिष्ठ, मृत्युंजय, लीलावती, | ७. वैशंपायन८. हस्ति; ९. सूत। वामन, वायु, वारुण, विष्णुधर्म, लघुभागवत, शिवधर्म, | महाभारत का निर्माण--पौराणिक साहित्य के साथशो केय, सनत्कुमार, सांब, सौर (ब्रह्म) (एकान. १.२०- साथ संस्कृत साहित्य का आद्य एवं सर्वश्रेष्ठ 'इतिहास २३; कूर्म. पूर्व. १.१५-२०, गरुड, १.२२३, १७-२० | पुराण ग्रंथ' माने गये 'महाभारत' का निर्माण भी व्यास दे. भा. १.३.१३-१६; स्कंद. प्रभास. २.११-१५; सूत- | के द्वारा हुआ। संहिता १.१३-१८; पद्म. पा. ११५, उ. ९४-९८; | शतपथ ब्राह्मण, तैत्तिरीय आरण्यक, एवं छांदोग्य ब्रह्मांड. १.२५.२३-२६; पराशर. १.२८-३१; वारुण.१; | उपनिषद में 'इतिहास पुराण' नामक साहित्य प्रकार का मत्स्य. ५३.६०-६१)। . निर्देश प्राप्त है। किन्तु इन ग्रंथों में निर्दिष्ट 'इतिहास पुराणों का दैवतानुसार पृथक्करण-पुराणों के शैव, पुराण' स्वतंत्र ग्रंथ न हो कर, आख्यान एवं उपाख्यान के वैष्णव, ब्राह्म, अनि आदि विभिन्न प्रकार है, जो उनके रूप में ब्राह्मणादि ग्रंथों में ग्रथित किये गये थे। ये आख्यान द्वारा प्रतिपादित उपासना-सांप्रदायों के अनुसार किये अत्यंत छोटे होने के कारण, उनका विभाजन 'पर्व' गये हैं । उपास्य दैवतों के अनुसार, पुराणों का विभाजन 'उपपर्व' आदि उपविभागों में नहीं किया जाता था, निम्न प्रकार किया जाता है : जैसा कि उन्हीं ग्रंथों में निर्दिष्ट 'सर्पविद्या,' 'देवजन(१) शिव-उपासना के पुराण--१. कूर्म; २. ब्रह्मांड; | विद्या' आदि पौराणिक कथानकों में किया गया है। ३. भविष्य; ४. मत्स्य; ५. मार्कंडेय; ६. लिंग; ७. वराह; ___ इतिहास-पुराण ग्रंथ--व्यास की श्रेष्ठता यह है कि, ८. वामन; ९. शिव; १०. स्कंद। इसने ब्राह्मणादि ग्रंथों में निर्दिष्ट 'इतिहास-पुराण' साहित्य जैसा तत्कालीन राजकीय इतिहास, 'सर्पविद्या' . (२) विष्णु-उपासना के पुराण-१. गरुड, २. नारद जैसे पौराणिक कथानकों के लिए ही उपयोग किये गये ३. भागवत; ४. विष्णु। पर्व, उपपर्वादि से युक्त साहित्यप्रकार में बाँध लिया। (३) ब्रह्मा-उपासना के पुराण--१. पद्मा २. ब्रह्म । इस प्रकार यह एक बिल्कुल नये साहित्यप्रकार का आद्य (४) अग्नि-उपासना के पुराण-१. अग्नि । जनक बन गया, एवं इसके द्वारा विरचित 'महाभारत' (५) सवितृ-उपासना के पुराण--१. ब्रह्मवैवर्त बृहदाकार 'इतिहास पुराण' साहित्य का आद्य ग्रंथ साबित (स्कंद. शिवरहस्य. संभव. २.३०-३८; पंडित ज्वाला हुआ। प्रसाद, अष्टादशपुराणदर्पण. पृ. ४६)। भारतीययुद्ध में विजय प्राप्त करनेवाले पाण्डुपुत्रों की गीताग्रंथ--कर्मपुराण में निम्नलिखित 'गीताग्रंथ' प्राप्त | विजयगाथा चित्रित करना, यह इसके द्वारा रचित 'जय' है, जो महाभारत में प्राप्त 'भगवद्गीता' के ही समान श्रेष्ठ नामक ग्रंथ का मुख्य हेतु था। पाण्डुपुत्रों के पराक्रम का श्रेणि के तत्त्वज्ञानग्रंथ माने जाते है:-१. ईश्वरगीता इतिहास वर्णन करते समय, इसने तत्कालीन धार्मिक, राज(कर्म, उत्तर. १-११), २. व्यासगीता (कूर्म. उत्तर, नैतिक तत्त्वज्ञानों के समस्त स्त्रोतों को अपने ग्रंथ में ग्रथित १२-२९) इत्यादि । किया। इतना ही नहीं, इसी राजनीति को धार्मिक, राजव्यास की पुराणशिष्यपरंपरा-पुराणग्रंथों के निर्माण | नैतिक एवं आध्यात्मिक आधिष्ठान दिलाने का सफल प्रयत्न के पश्चात् , व्यास ने ये सारे ग्रंथ अपने पुराण शिष्यपरं- | व्यास के इस ग्रंथ में किया गया है। परान्तर्गत प्रमुख शिष्य रोमहर्षण 'सूत' को सिखाये, जो अपने इस ग्रंथ में, आदर्श राजनैतिक जीवन के उपलक्ष आगे चल कर व्यास के पुराणशिष्यपरंपरा का प्रमुख | में प्राप्त भारतीय तत्त्वज्ञान व्यास के द्वारा ग्रथित किया आचाय बन गया। | गया है। इस प्रकार व्यक्तिविषयक आदर्शों को शास्त्रप्रमाण्य ९२७
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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