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वृत्र
प्राचीन चरित्रकोश
वृद्धकन्या
इंद्र को परास्त कर इंद्रपद प्राप्त किया (वा. रा. उ. | भारत में उशनस् ऋषि के साथ इसका किया 'वृत्र-उशनस् ८४-८६)।
संवाद' प्राप्त है, जहाँ ज्ञान से मोक्षप्राप्ति किस तरह हो भागवत में इसे ब्राह्मण एवं श्रीविष्णु का परमभक्त कहा| सकती है, इसकी चर्चा प्राप्त है। उसी ग्रंथ में 'वृत्र-गीता' गया है (भा. ६.९; पन. भू. २५)। इस कारण इंद्र- | का निर्देश भी मिलता है। वत्र युद्ध में श्रीविष्ण ने गुप्त रूप से ही इंद्र की सहायता परिवार--इसके पुत्र का नाम मधुर था (बा. रा. उ. की थी। यह ब्राह्मण होने के कारण, इसका वध करने से | ८४.१०)। ब्रह्मांड में इसे अनायुषा का पुत्र कहा गया इंद्र को ब्रह्महत्त्या का दोष लग गया था।
है, एवं इसका वंश विस्तृत रूप में दिया गया है । अनाइंद्र से युद्ध--इंद्र-वृत्र युद्ध की अनेकानेक कथाएँ युषा के कुल पाँच पुत्र थे :- १. अररु; २. बल; ३. पुराणों में प्राप्त है, जहाँ युद्धसामथ्र्य से नहीं बल्कि छल | वृत्र, ४. विज्वर; ५. वृप । ये पाँच ही भाइयों को महेंद्रा. कपट से इंद्र के द्वारा इसका वध होने के निर्देश प्राप्त हैं। नुचर एवं ब्रह्मवेत्ता पुत्र उत्पन्न हुए, जो निम्न प्रकार थे:इंद्र ने रंमा अप्सरा के द्वारा इसे शराब पिलवायी, एवं १. वनपुत्र-बक आदि सहस्त्र पुत्र; २. बलपुत्र-निकुंभ एवं शराब की उसी नशीली एवं व्रतहीन अवस्था में जब यह चक्रवर्मन् ; ३. विज्वरपुत्र-कालक एवं खर; ४. वृषपुत्रसमुद्र किनारे सोया था, उसी समय इससे संधि कर, आधा श्राद्धाह, यज्ञह ब्रह्म एवं पशुहः ५. अररुपुत्र- धुंधु, जो इंद्रपद पुनः प्राप्त किया (पद्म. भू. २५; वा. रा. उ. ८४- कुवलाश्व ऐक्ष्वाक के द्वारा मारा गया (ब्रह्मांड. ३.६.३५८६; स्कंद. १.१.१६)।
वध-आगे चल कर जब यह असावधान अवस्था में | २. एक असुर, जो हिरण्याक्ष का सेनापति था। इंद्रथा, तब इंद्र ने इस पर हमला किया, एवं दधीचि ऋषि हिरण्याक्ष युद्ध में, इंद्र ने इसकी शिखा पकड़ कर खङ्ग से - की अस्थियों से बने हुए वज्र पर समुद्र का झाग लपेट इसका वध किया था (पद्म. भू. ७३)। .. कर उससे इसका वध किया ( दे. भा. ६.१.६; पद्म. भू. वृत्रन--एक राजा, जिसने यमुना एवं गंगा नदियों २४; भा. ६.९ म.व. १०० उ.१०)। इंद्र ने इसका के तट पर अश्वों को बाँधा था (ऐ. बा. ८.२३.५)। रौथ वध संध्यासमय किया, एवं इस प्रकार ब्रह्मा के द्वारा इसे के अनुसार, यहाँ वृत्रघ्न इंद्र की ओर संकेत किया प्राप्त हुए वर के शतों की पूर्ति करते हुए ही, इंद्र ने गया है। . इसका वध किया।
__वृत्रघातक---विष्णु के बारह अवतारों में से नौवाँ भागवत के अनुसार, वृत्रवध के समय इंद्र ने सर्वप्रथम | अवतार (मत्स्य. ४७.४४ )। इसका एक हाथ काट दिया। इतने में इंद्र का वज्र नीचे वृद्धकन्या--एक बालब्रह्मचारिणी, जो कुणि गर्ग महर्षि गिर गया । इसने इंद्र को अपना वज्र उठाने के लिए कहा, की कन्या थी। इसके पिता ने इसका विवाह करना चाहा, जब उसने इसका दूसरा हाथ काट दिया । पश्चात् यह इंद्र किन्तु यह जन्म से ही अत्यंत विरक्त होने के कारण, के उदर में प्रविष्ट हुआ, जहाँ से बाहर आने पर इंद्र ने इसने विवाह करने से इन्कार कर दिया। इसका शिरच्छेद किया (भा. ६.१२)।
__तपस्या-आगे चल कर इसने घोर तपस्या प्रारंभ की। __इंद्र वृत्रयद्ध में निम्नलिखित असुर इसके पक्ष में शामिल | किन्तु नारद इसे आ मिला, एवं उसने इसे कहा कि,विवाहथे:--अनर्वन् , अंबर, अयोमुख, उत्कल, ऋषभ, नमुचि, संस्कार किये बगैर स्त्री के लिए स्वर्गलोक की प्राप्ति पुलोमत् , प्रहेति, विप्रचित्ति, वृषपर्वन् , शंकुशिरस् , शंबर, | असंभव है। हयग्रीव, हेति एवं पाताल में रहनेवाले कालेय अथवा नारद के कथनानुसार, इसने विवाह करने का निश्चय कालकेय राक्षस (भा. ६.१०; स्कंद. १.१.१६; पद्म.. | किया, एवं अपना आधा पुण्य प्रदान करने की शर्त पर पा. १९)।
गालव ऋषि के शिष्य शंगवत् ऋषि से विवाह किया। तत्त्वज्ञ-पूर्वजन्म में यह चित्रकेतु नामक विष्णुभक्त विवाह करते समय शंगवत् ने इसे कहा था कि, केवल राजा था (भा. ६.१४ ) । मृत्यु के पूर्व इसने इंद्र | एक रात के लिए ही वह इसके साथ रहेगा । अपने पति को भागवधर्म का उपदेश प्रदान किया था। सनत्कुमारों से | के इस शर्त के अनुसार, इसने एक रात के लिए वैवाहिक इसे योगज्ञान की प्राप्ति हुई थी, जिस कारण इसे मृत्यु जीवन व्यतीत किया, एवं तत्पश्चात् अपनी तपस्या के बल के पश्चात् सद्गति प्राप्त हुई (म. शां. २८१)। महा- से यह स्वर्गलोक गयी (म. श. ५१)।