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विश्वरूप
प्राचीन चरित्रकोश
विश्वामित्र
परिवार--सूर्यकन्या विष्टि इसकी पत्नी थी, जिससे इसे | विश्वसामन् आत्रेय-एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. निम्नलिखित भयानक पुत्र उत्पन्न हुए थे:-- गण्ड, ५.२२)। इसके सूक्त में अग्नि के उपासना की प्रेरणा दी रक्ताक्ष, क्रोधन, व्यय, दुर्मुख एवं हर्षण । | गयी है।
२. ( स्वा. प्रिय.) एक राजा, जो वृषभदेव पुत्र भरत | विश्वसा--(सू. इ.) एक इक्ष्वाकुवंशीय राजा, राजा के पंचजनी नामक पत्नी का पिता था।
जो महत्वत् राजा का पुत्र, एवं प्रसेनजित् राजा का पिता ३. अजित देवों में से एक।
था (भा. ९.१२.७)। विश्वरूपा--धर्म ऋषि की पत्नी, जिसकी कन्या का
विश्वसृज--एक आचार्यसमूह, जिन्होंने सहस्र नाम धर्मव्रता था (वायु. १०७.२)।
संवत्सरों तक चलनेवाले एक यज्ञसत्र का आयोजन किया विश्ववार--एक वैदिक यज्ञकर्ता । यज्ञ एवं मायिन्
था। आगे चल कर उसी सत्र से सृष्टि का निर्माण हुआ नामक ' होतो ओं' के साथ इसका निर्देश प्राप्त है
(पं. बा. २५.१८)। भाष्य के अनुसार, यहाँ संवत्सर
शब्द का अर्थ 'दिन' ही लेना चाहिए (ऋ. ५.४४.१)।
२. ब्रह्मसावर्णि मन्वन्तर के एक अवतार का पिता। विश्ववारा आत्रेयी--एक वैदिक सूक्तद्रष्टी (ऋ. ५. | २८)।
विश्वफणि अथवा विश्वस्फूर्ति-(मगध,भविष्य.)
मगध देश का एक सार्वभौम राजा, जिसे पुरंजय नामांतर विश्ववेदि-एक राजनीतिज्ञ, जो शौरि राजा का मंत्री था। शौरि एवं उसके चार भाई खनित्र, उदावसु,
भी प्राप्त था (पुरंजय ६. देखिये)। इसने अपने राज्य के
| ज्ञातियों की पुनर्रचना की थी। इसने क्षत्रियों का वर्चस्व सुनय एवं महारथ ये प्रजापति के पुत्र थे । इन भाइयों में से खनित्र मुख्य अधिपति था, एवं शौरि, उदावसु, सुनय
विनष्ट कर, उनका स्थान कैवर्त, मद्रक, पुलिंद, ब्राह्मण, एवं महारथ क्रमशः उसके राज्य के पूर्व, दक्षिण, पश्चिम
पंचक आदि नवनिर्मित जातियों को दे दिया । इसकी मृत्यु एवं उत्तर भागों का कारोबार देखते थे। इन चार
| गंगातीर पर हुई (ब्रह्मांड. ३.७४.१९०-१९३; वायु: राजाओं के चार पुरोहित थे, जिनके नाम निम्न प्रकार थे:
९९.३७०-३८२)। अत्रिकुलोपत्पन्न सुहोत्र, गौतमकुलोत्पन्न कुशावर्त, कश्यप
विश्वा--प्राचेतम् दक्ष एवं असिक्नी से उत्पन्न कुलोत्पन्न प्रमति, एवं वसिष्ठ ।
| एक कन्याद्वय, जिनका विवाह क्रमशः धर्म एवं कश्यप ___ इसने उपर्युक्त चार ही पुरोहितों को खनित्र के विरुद्ध ।
से हुआ था। इनसे क्रमशः विश्वेदेव,तथा यक्ष एवं राक्षस जारणमारणादि उपाय करने की प्रार्थना की । तदनुसार,
उत्पन्न हुए। इन चार पुरोहितों ने चार कृत्याओं का निर्माण किया,
विश्वाची--प्राधा अप्सरा की कन्या (म. स . १०. जिन्होंने आगे चल कर खनित्र पर आक्रमण किया।
११)। यह ययाति राजा के साथ रत हुई थी (म. आ. किन्तु खनित्र के शुद्धाचरण के कारण, चार ही कृत्या
८०.८३८. पंक्ति. १-२)। परास्त हो कर लौट आयी, एवं उन्होंने अपने निर्माण
विश्वाधार--मेधातिथि का पुत्र ।
विश्वानर-एक राजा, जिसकी पत्नी का नाम शुचिकर्ता चार पुरोहितों के साथ इसका भी भक्षण किया
श्मती था। शिव की कृपा से इसे गृहपति नामक पुत्र (मार्क. ११४)।
उत्पन्न हुआ, जिसने तीन वर्षों के अल्पावधि में सांगवेदों विश्वसह-एक राजा, जो भागवत के अनुसार
का अध्ययन कर, शिव से दीर्घायुष्य प्राप्त किया (स्कंद, ऐडविड राजा का, एवं विष्णु के अनुसार इलवील राजा
४.१.११)। का पुत्र था। इसके पुत्र का नाम खट्वांग था ( भा. ९.९.
विश्वामित्र-(सो. अमा.) एक सुविख्यात ऋषि, ४१; विष्णु. ४.४.७५)।
जो अपने युयुत्सु, विजिगिषु एवं युगप्रवर्तक व्यक्तित्व के ___२. ( सू. इ.) इक्ष्वाकुवंशीय विश्वपाल राजा का
कारण, वैदिक एवं पौराणिक साहित्य में अमर हो चुका नामांतर | विष्णु में इसे व्युषिताश्व राजा का, एवं वायु में | है। कान्यकुब्ज देश के कुशिक नामक सुविख्यात क्षत्रियध्युषिताश्व राजा का पुत्र कहा गया है।
कुल में उत्पन्न हुआ विश्वामित्र,ज्ञानोपासना एवं तपःसामर्थ्य ३. (सो. क्रोष्टु.) लोमपादवंशीय एक राजा, जो श्वेत | के कारण, एक श्रेष्ठतम ऋषि एवं वैदिक सूक्तद्रष्टा आचार्य राजा का पुत्र था।
बन गया। इस कार्य में देवराज वसिष्ठ जैसे परंपरागत
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