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विश्वकर्मन्
प्राचीन चरित्रकोश
विश्वमनस्
यज्ञसंस्था के प्रारंभिक काल में भूमिदान घृणास्पद माना । ३. विश्वेदेव नामक देवता समूह का नामान्तर (वायु. जाता था, जिसका ही संकेत विश्वकर्मन की उपर्युक्त कथा ६२.२२, विश्वेदेव देखिये)। में किया हुआ प्रतीत होता है।
विश्वधा-वशवर्तिन् देवों में से एक । विश्वकाय-हिरण्यकशिपु की सभा का एक राक्षस विश्वन्तर सौषद्मन--एक राजा, जिसके पुरोहित (पन. सृ. ४५)।
श्यापर्ण थे। अपने उन पुरोहितों का त्याग कर, इसने कई विश्वकृत्--एक सनातन विश्वेदेव (म. अनु. ९१. अन्य पुरोहितों के द्वारा यज्ञ का आयोजन किया। आगे ३६)।
चल कर, श्यापर्ण पुरोहितगणों में से राम मार्गवेय नामक विश्वग--(स्वा.) एक राजा, जो भागवत के अनुसार आचार्य ने इसे समझा कर, पुनः एक बार श्यापों की पूर्णिमत् राजा का पुत्र था।
| राजपुरोहित के नाते नियुक्ति करवायी, एवं एक सहस्र विश्वगश्व-(सू. इ.) एक राजा, जो विष्णु एवं गायं उन्हें दिलवायीं (ऐ. बा. ७.२७.३.४; ३४.७.८)। मत्स्य के अनुसार, पृथु वैन्य राजा के पाँच पुत्रों में से सुषमन का वंशज होने से इसे 'सोपान पैतक नाम एक था । इसे 'विश्वरंधि,' 'वृषदश्व,' 'विष्ठराग,' प्राप्त हुआ होगा। एवं 'विश्वग' नामान्तर भी प्राप्त थे।
विश्वपति--मनु नामक अग्नि का द्वितीय पुत्र । यह विश्वचर्षणि--एक पैतृक नाम, जो घुम्न विश्वचर्षणि वेदों के संपूर्ण विश्व का पति था, जिस कारण इसे विश्वआत्रेय नामक आचार्य के लिए प्रयुक्त किया गया है। पति नाम प्राप्त हुआ था (म. व. २११.१७)। .... (ऋ. ५.२३)।
विश्वपातृ--पितरों में से एक। . विश्वचित्ति-हिरण्यकशिपु के दरबार का एक राक्षस
विश्वपाल-एक राजा, जो व्युत्थिताश्व (ध्युषिताश्व) (पन्न. सृ. ४५)।
रोजा का पुत्र, एवं हिरण्यनाभ कौसल्य राजा का पिताविश्वजित्-(सो. पुरुरवस् .) एक राजा, जो वायु
था। विष्णु एवं वायु में इसे 'विश्वसह' कहा गया है। . के अनुसार बृहद्रथ राजा का, एवं विष्णु के अनुसार जयद्रथ राजा का पुत्र था ( वायु. ९९.१७२)। मत्त्य में
विश्वभुज- पाकयज्ञ का एक अग्निदेवता, जो इसे 'अश्वजित्' कहा गया है। इसके पुत्र का नाम
बृहस्पति के चार पुत्रों में से चतुर्थ पुत्र था। यह समस्त सेनजित् था।
प्राणियों के उदर में रह कर उनके द्वारा खाये हुए पदार्थों २. एक अग्नि, जो बृहस्पति के पुत्रों में से एक था
को पचाता हैं । गोमती नदी इतकी पत्नी मानी जाती (म. व. २०९.१६)। यह समस्त विश्व की बुद्धि को है (म. व. २०९.१७)। अपने वश में रखता है। इसलिए अध्यात्मशास्त्र के २. पाण्डवों के रूप में प्रकट होनेवाले पाँच इंद्रों में से विद्वानों के द्वारा इसे 'विश्वजित् नाम दिया गया है। एक । अन्य चार इंद्रों के नाम भृतधामन् , शिवि, शांति,
३. (सो. मगध. भविष्य.) एक राजा, जो भागवत, एवं तेजस्विन् थे (म. आ.१८९.१९१६७)। विष्ण एवं ब्रह्मांड के अनुसार सत्यजित् राजा का पुत्र था। ३. पितरों में से एक। वायु में इसे वीरजित् कहा गया है।
विश्वमनस् वैयश्व--एक ऋषि, जो इंद्र का मित्र था ४. एक दानव, जो कश्यप एवं दनु के पुत्रों में से एक |
। (ऋ. ८.२३.२, २४.७; पं. वा. १५.५.२०)। 'वरोसुथा। एक समय यह समस्त पृथ्वी का शासक था (म. शां.।
पामन् ' को धनप्राप्त कराने के लिए एक सूक्त के द्वारा २२७.५३; वायु. ६८.६)।
इसने प्रार्थना की है (ऋ. ८.२३.२८)। सायणाचार्य के विश्वदंष्ट्र-एक दैत्य, जो पूर्वकाल में पृथ्वी का शासक
अनुसार, यहाँ 'वरोसुषामन् ' किसी व्यक्ति का नाम था (म. शां. २२७.५३)।
नहीं था। विश्वदत्त--सोमवंश का एक राजा, जो बकुलासंगम पर श्रीगणेश की आसना करने के कारण, उस देवता | यह 'व्यश्व' का वंशज था, जिस कारण इसे के गणों का आधिपति बन गया।
'वैयश्व पैतृक नाम प्राप्त हुआ था। ऋग्वेद के कई सूक्तों विश्वदेव--जिताजित् देवों में से एक ।
के प्रणयन का श्रेय भी इसे दिया गया है (ऋ.८. २. पारावत देवों में से एक (ब्रह्मांड. २.१३.९५)।। २३-२६)।
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