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विश्वकर्मन्
प्राचीन चरित्रकोश
विश्वकर्मन्
महाभारत एवं पुराणों में-महाभारत में इसे 'शिल्प- | प्राप्ति एवं नंदी नामक अन्य तीन पत्नियाँ भी थी (म. प्रजापति एवं 'कृतीपति' कहा गया है (भा. ६.६. आ. ६०.२६-३२)। १५)। ब्रह्मांड में इसे त्वष्ट का पुत्र एवं मय का पिता कहा (1) पुत्र--इसके निम्नलिखित पुत्र थे:- १. मनु गया है (ब्रह्मांड. १.२.१९)। किन्तु यह वंशक्रम कल्पना- चाक्षुषः २. शम, काम एवं हर्ष, जो क्रमशः रति, प्राप्ति रग्य प्रतीत होता है ( मय देखिये )। यह प्रभास वसु एवं एवं नंदी के पुत्र थे; ३. नल वानर (म. व. २६७.४१); बृहस्पति भगिनी योगसिद्धा का पुत्र था। भागवत में इसे ४.विश्वरूप, जो इसने इंद्र के प्रति द्रोहबुद्धि होने से वान्तु एवं आंगिरसी का पुत्र कहा गया है । ब्रहा। के दक्षिण उत्पन्न किया था; ५. वृत्रासुर, जो इसने विश्वरूप के वक्षमाग से यह उत्पन्न होने की कथा भी महाभारत में मारे जाने पर इंद्र से बदला लेने के लिए उत्पन्न किया प्राप्त है (म. आ. ६०.२६-३२)।
था (म. उ. ९.४२.४९)। शिल्पशास्त्रज्ञ--यह देवों के शिल्पसहस्रों का निर्माता (२) कन्याएँ--इसकी निम्नलिखित कन्याएँ थी:एवं 'वर्धक' बढई था । देवों के सारे अस्त्र-शस्त्र, १. बहिष्मती, जो प्रियव्रत राजा की पत्नी थी;२. संज्ञा एवं आभूषण एवं विमान इसी के द्वारा ही निर्माण किये गये | छाया जो विवस्वत की पत्नियाँ थी; ३. तिलोत्तमा, जिसे थे। इसी कारण, यह देवों के लिए अत्यंत पूज्य बना था। इसने ब्रह्मा की आज्ञा से निर्माण किया था (म. आ.
इसके द्वारा निम्नलिखित नगरियों का निर्माण किया । २०३.१४-१७) गया था:- १इंद्रप्रस्थ (धृतराष्ट्र के लिए ) (म. आ. ग्रंथ-इस के नाम पर शिल्पशास्त्रविषयक एक ग्रंथ भी १९९.१९२७* पंक्ति.३-४); २. द्वारका (श्रीकृष्ण के | उपलब्ध है ( मत्स्य. २५२. २१; ब्रह्मांड. ४.३१.६-७)। लिए ) (भा. १०.५० ह. वं. २.९८); ३. वृन्दावन | २. विश्वकर्मन् का एक ब्राह्मण अवतार । अपने (श्रीकृष्ण के लिए) (ब्रह्मवै, ४.१७); ४. लंका (सुकेश- पूर्वजन्म में इसने क्रोध में आ कर घृताची नामक पुत्र राक्षसों के लिए) (वा. रा. उ. .६.२२-२७); ५. प्रिय अप्सरा को शूद्रकुल में जन्म लेने का शाप इन्द्रलोक ( इंद्र के लिए ) (भा. '६.९:५४); ६. सुतल | दिया, जिसके अनुसार वह एक ग्वाले की कन्या बन नामक पाताल लोक--(भा. ७.४.८); ७. हस्तिनापुर गयी । ब्रह्मा की कृपा से इसे भी ब्राह्मणवंश में जन्म (पाण्डवों के लिए.) (भा. १०.५८.२४); ८. गरुड का प्राप्त हुआ। इस प्रकार ब्राह्मण पिता एवं ग्वाले की कन्या भवन (मत्स्य. १६३.६८)।
के संयोग से दर्जी, कुम्हार, स्वर्णकार, बढ़ई आदि अस्त्रों का निर्माण-श्रीविष्णु का सुदर्शन, शिव का तंत्रविद्याप्रवीण जातियों का निर्माण हुआ । इसी कारण, त्रिशूल एवं रथ,तथा इंद्र का वज्र एवं विजय नामक धनुष्य ये सारी जातियाँ स्वयं को विश्वकर्मन् के वंशज कहलाते आदि अस्त्रों का निर्माण भी विश्वकर्मन् के ही द्वारा | है (ब्रह्मवै. १. १०)। किया गया था। इनमें से शिव का रथ इसने त्रिपुरदाह, ३. वशवर्तिन देवों में से एक । यह प्रभात वसु एवं के उपलक्ष्य में, एवं इंद्र का वज्र इसने दधीचि ऋषि की | भुवना के पुत्रों में से एक था (ब्रह्मांड. २.३६.२९ )। अस्थियाँ से बनाया था (म. क. २४.६६; भा. ६.१०)। विश्वकर्मन भौवन--एक सुविख्यात वैदिक राजा ।
इन अस्त्रों के निर्माण के संबंध में एक चमत्कृतिपूर्ण | ऐतरेय ब्राहाण के अनुसार, इसे कश्यप ने एंद्र अभिषेक कथा पन में प्राप्त है। इसकी संज्ञा नामक कन्या का किया था, जिस समय इसने कश्या को दक्षिणा के रूप विवाह विवस्वत् (सूर्य) से हुआ था। विवस्वत का तेज में पृथ्वी का दान दिया था (ऐ. बा. ८. २१.८)। वह न सह सकी, जिस कारण वह अपने पिता के पास | शतपथ ब्राह्मण में इसके द्वारा 'सर्वमेधयज्ञ' में कश्या को वापस आयी । अपनी पत्नी को वापस लेने के लिए समस्त पृथ्वी का दान देने का निर्देश प्राप्त है ( श. ब्रा. विवस्वत् भी वहाँ आ पहुँचा । पश्चात् विवस्वत् का थोड़ा | १३.७.१.१५)। ही तेज बाकी रख कर, उसका उर्वरित सारा तेज़ इसने | किन्तु इन दोनों ही अवसरों पर, पृथ्वी ने अपना इस निकाल लिया, एवं उसी तेज़ से देवताओं के अनेकानेक | प्रकार दान दिया जाना अस्वीकृत कर दिया। इस अत्रों का निर्माण किया।
कारण, क्रुद्ध हो कर इसने समस्त प्राणिसृष्टि की, एवं परिवार-इसकी कृति (आकृति ) नामक भार्या का | अंत में स्वयं की यज्ञ में आहुति दे दी (ऋ. १०.८१.१; निर्देश भागवत में प्राप्त है । उसके अतिरिक्त इसकी रति, | ऐ. बा. ८. १०; नि. १०.२६)।
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